
नई दिल्ली | 15 जून 2025
जब कोई विमान हादसे का शिकार होता है, तो अक्सर उसका मलबा आग में जलकर राख हो जाता है या समुद्र में समा जाता है। लेकिन हैरानी की बात यह होती है कि इतनी भीषण तबाही के बावजूद “ब्लैक बॉक्स” सुरक्षित मिल जाता है। यह ब्लैक बॉक्स ही दुर्घटना की असली वजह जानने में मदद करता है।
ब्लैक बॉक्स वास्तव में दो हिस्सों से मिलकर बना होता है – कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)। CVR पायलट और को-पायलट की बातचीत और कॉकपिट की अन्य आवाज़ों को रिकॉर्ड करता है, जबकि FDR विमान की तकनीकी जानकारी जैसे स्पीड, ऊंचाई, इंजन की स्थिति, और फ्लाइट कंट्रोल डेटा को रिकॉर्ड करता है। ये दोनों रिकॉर्डर प्लेन के पिछले हिस्से में लगाए जाते हैं, क्योंकि वहां दुर्घटना के समय सबसे कम नुकसान होता है।
ब्लैक बॉक्स को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि यह आग, पानी, भारी दबाव और झटकों को भी झेल सके। इसका बाहरी हिस्सा टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील जैसे मजबूत मटेरियल से बना होता है। इसे 1100 डिग्री सेल्सियस तापमान तक की आग में एक घंटे तक सुरक्षित रहने के लिए टेस्ट किया जाता है। साथ ही, यह समुद्र की 20,000 फीट गहराई तक दबाव सह सकता है।
इसके अंदर की परतें थर्मल इंसुलेशन, शॉक एब्जॉर्बर और हाई-टेक सेफ्टी लेयर से बनी होती हैं, जो अंदर के डेटा को सुरक्षित रखती हैं। हादसे के बाद ब्लैक बॉक्स से एक “अंडरवॉटर लोकेटर बीकन” सिग्नल भेजता है, जो 30 दिनों तक सक्रिय रहता है और सर्च टीम को ब्लैक बॉक्स खोजने में मदद करता है।
ब्लैक बॉक्स विमान हादसे की जांच में सबसे अहम कड़ी होता है। इसके जरिए पता चलता है कि पायलट ने आखिरी समय में क्या कहा, क्या तकनीकी गड़बड़ी आई और फ्लाइट में क्या कुछ हुआ। इसी डेटा से भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाते हैं।






