
हरेंद्र दुबे
गोरखपुर, 10 अप्रैल 2025:
यूपी में पूर्वांचल के जिलों में खास काला नमक चावल की खेती का बदला स्वरूप कृषि वैज्ञानिक रामचेत चौधरी के जिक्र बिना अधूरे लगते है। कृषि वैज्ञानिक ने महक व स्वाद से अलग पहचान बनाने वाले काला नमक की लड़खड़ाती खेती को संभालकर उसके वर्तमान को संवारा ही उसके भविष्य को उजला करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
लड़खड़ाती खेती को दिलाई वैश्विक पहचान
काला नमक चावल को महात्मा बुद्ध के महा प्रसाद का दर्जा दिया जाता है। पूर्वाचल के 11 जनपदों में 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में काला नमक चावल की पैदावार हो रही है। खास स्वाद और महक रखने वाले इस अनूठे चावल को संरक्षित करने के लिए कृषि वैज्ञानिक रामचेत चौधरी तकरीबन 30 सालों से संघर्ष कर रहे हैं। उनकी रिसर्च से इस नकदी फसल का घट रहा रकबा ठहरा वहीं किसानों को अच्छी पैदावार मिलने लगी। इसके लिए कृषि वैज्ञानिक ने परम्परागत खेती के तरीकों पर जोर दिया। इसके परिणाम भी सुखद आये। आज उनके रिसर्च के आधार पर तैयार पद्धति से पैदा किया गया काला नमक चावल देश-विदेश में गोरखपुर से भेजा जाता हैं। रामचेत के प्रयासों से इसे फिर से नई पहचान मिली है। खाने में बेहद स्वादिष्ट और सुगंधित यह चावल अब धीरे- धीरे वैश्विक पहचान भी बनता जा रहा है। सरकार की तरफ से इसे जीआई टैग भी मिल चुका है।
चार प्रजातियां हुईं विकसित, सफलता पर वैज्ञानिक को मिला पद्म श्री
संत कबीर नगर जिले के ग्राम महुली भीमरापार के रहने वाले कृषि वैज्ञानिक रामचेत चौधरी को भारत सरकार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है।
रामचेत चौधरी को इससे पहले सीएम योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर रत्न से सम्मानित कर चुके हैं। रामचेत चौधरी बताते हैं कि उन्हें काला नमक चावल को संरक्षित करने की प्ररेणा हरित क्रांति के जनक डॉ एमएस स्वामीनाथन से मिली। आज काला नमक चावल की चार प्रजातियां तैयार की जा रही हैं। शुगर के मरीजों के लिए यह चावल पूरी तरह मुफीद है। एक जिला एक उत्पाद में शामिल यह चावल गोरखपुर मंडल सहित चार जिलों में पैदा किया जा रहा है। इनमें सिद्धार्थनगर, गोंडा, बस्ती और देवरिया प्रमुख है। इसके अलावा महाराजगंज बहराइच भी शामिल हैं।