
नई दिल्ली | 29 जुलाई 2025
बाघों को बचाने की वैश्विक कोशिशों में भारत एक मिसाल बनकर उभरा है। इंटरनेशनल टाइगर डे 2025 के मौके पर जारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में अब 3100 से अधिक बाघ हैं, जो दुनिया की बाघ आबादी का करीब 75% हिस्सा है। यह स्थिति तब है जब एक दौर में बाघों की संख्या खतरनाक रूप से गिर गई थी। अब सवाल उठता है कि भारत ने रूस और चीन जैसे बड़े देशों को कैसे पीछे छोड़ा? इसके पीछे पांच ठोस वजहें हैं, जिन्होंने भारत को ‘टाइगर कैपिटल’ बना दिया।
पहली वजह है प्रोजेक्ट टाइगर। साल 1973 में भारत सरकार ने इस अभियान की शुरुआत की, जिसमें देशभर में 54 टाइगर रिजर्व बनाए गए। यह रिजर्व करीब 75 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। सरकार ने तकनीक, जैसे कैमरा ट्रैप और DNA विश्लेषण के ज़रिए निगरानी को मजबूत किया।
दूसरी बड़ी वजह है कड़े कानून और उनका सख्ती से पालन। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत शिकार पर पूरी तरह रोक है। शिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाती है और वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो लगातार निगरानी रखता है।
तीसरी वजह है स्थानीय लोगों की भागीदारी। कई गांवों में बाघ पर्यटन के ज़रिए रोजगार मिला, जिससे लोगों का रुझान संरक्षण की ओर बढ़ा। सरकार ने मुआवजा योजनाएं और जागरूकता अभियान भी चलाए, जिससे मानव-बाघ संघर्ष कम हुआ।
चौथी वजह है प्राकृतिक आवास की सुरक्षा। जंगलों की कटाई, अवैध खनन पर रोक लगाई गई और बाघों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर बनाए गए। इससे बाघों को बिना डर अपने क्षेत्र बदलने की सुविधा मिली।
पांचवीं वजह है अवैध व्यापार पर नियंत्रण। बाघों के अंगों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को रोकने के लिए भारत ने कई कानून लागू किए और वैश्विक सहयोग से इस दिशा में सफलता हासिल की।
भारत की यह सफलता सिर्फ सरकारी नीति नहीं, बल्कि समाज, विज्ञान और समुदाय के समन्वित प्रयासों का परिणाम है। यह दुनिया के लिए प्रेरणा है कि संरक्षण में इच्छाशक्ति सबसे बड़ा हथियार है।





