काठमांडू, 2 जून 2025
चीन ने नेपाल की आंतरिक राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। चीन ने नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को एक विशेष मिशन सौंपा है, जिसमें उन्हें देश की प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों को एकजुट करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह पहल चीन की भूराजनीतिक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जिसका असर सीधे तौर पर भारत-नेपाल संबंधों पर पड़ सकता है।
जानकारी के अनुसार, भंडारी हाल ही में बीजिंग के दौरे पर गई थीं, जहां उन्हें यह नई भूमिका सौंपी गई। विद्या देवी भंडारी नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन (यूएमएल) से जुड़ी रही हैं और राष्ट्रपति पद से हटने के दो साल बाद वह फिर से राजनीतिक रूप से सक्रिय हो रही हैं। नेपाल में 2027 में होने वाले आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए, वे अपनी भूमिका फिर से मजबूत करने की कोशिश में जुटी हैं।
चीन का मुख्य उद्देश्य नेपाल में अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं को तेज करना है, जो वर्तमान में नेपाल में कांग्रेस पार्टी के प्रभाव के कारण धीमा पड़ गया है। कांग्रेस पार्टी भारत के करीब मानी जाती है, जिससे चीन की योजनाओं में रुकावट आ रही है।
नेपाल में इस समय तीन प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियां हैं—सीपीएन (यूएमएल), माओवादी केंद्र, और सीपीएन (यूनिफाइड)। इन तीनों दलों का अलग-अलग प्रभाव है, लेकिन यदि ये एकजुट होते हैं तो सत्ता में इनकी वापसी लगभग तय मानी जा रही है। चीन इस एकता के माध्यम से नेपाल की राजनीति को अपने पक्ष में मोड़ना चाहता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम भारत के लिए चिंता का विषय बन सकता है, क्योंकि नेपाल में चीन का बढ़ता दखल क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकता है। आने वाले समय में नेपाल की राजनीति में यह बदलाव भारत-चीन संबंधों को और जटिल बना सकता है।