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सिविल डिफेंस का प्रशिक्षण बैच… साइबर क्राइम की वर्कशॉप से जुड़ेंगे स्वयंसेवक

आईजीपी में आयोजित कार्यक्रम का डीसीपी पूर्वी शशांक सिंह ने किया शुभारंभ, स्वयंसेवकों को आपदा प्रबंधन से लेकर आधुनिक चुनौतियों तक का प्रशिक्षण देने पर रहा जोर

लखनऊ, 5 दिसंबर 2025:

इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के मून हाल में नागरिक सुरक्षा संगठन (सिविल डिफेंस) के वार्डन क्षमता निर्माण विषयक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान स्वयंसेवकों को साइबर क्राइम से बचाव की विशेष कार्यशाला से जोड़ने पर जोर दिया गया।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे बैच की शुरुआत शुक्रवार को डीसीपी पूर्वी लखनऊ, शशांक सिंह ने की। कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस मौके पर चीफ वार्डन अमरनाथ मिश्र ने डीसीपी शशांक सिंह का अभिनंदन किया। मुख्य अतिथि ने पहले बैच के प्रशिक्षण की मुख्य गतिविधियों को देखा और सिविल डिफेंस के स्वयंसेवकों की सराहना की। उन्होंने कहा कि आपदा, संकट और सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़े मौकों पर नागरिक सुरक्षा संगठन लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने सभी बैचों में साइबर क्राइम पर विशेष कार्यशाला जोड़ने की घोषणा की और इसके लिए विशेषज्ञ उपलब्ध कराने की बात भी कही।

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पहले सत्र में चीफ वार्डन अमरनाथ मिश्र ने स्वयंसेवकों को सिविल डिफेंस के महत्व, इतिहास और बदलते कार्यक्षेत्र की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत में सिविल डिफेंस की स्थापना 6 दिसंबर 1962 को हुई थी, जबकि इसकी जड़ें 1931 में फ्रांस में बनी एयर प्रीकॉशन फोर्स (APF) से जुड़ी हैं। बाद में यह मॉडल ब्रिटेन (1941) और आयरलैंड (1951) जैसे देशों ने भी अपनाया। भारत में इसे शुरुआती दौर में एयर रेड प्रीकॉशंस (ARP) के नाम से जाना गया।

उन्होंने बताया कि आज सिविल डिफेंस का दायरा काफी बढ़ चुका है आपदा प्रबंधन, सामाजिक जिम्मेदारियाँ, आपातकालीन सेवाएं और जनहित से जुड़े सभी कार्य इसमें शामिल हैं। कार्यक्रम में स्टाफ अफसर ऋतुराज रस्तोगी, डिवीजन वार्डन मोहम्मद नफीस, रामगोपाल, उपनियंत्रक रविंद्र कुमार, सहायक उपनियंत्रक मनोज वर्मा, ऋषि कुमार, ममता रानी, मुकेश कुमार, रेखा सहित कई पदाधिकारी और स्वयंसेवक मौजूद रहे।

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