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भारत की दवाइयों से कांपा ड्रैगन: अमेरिका-यूरोप संग चीन को घेरने की रणनीति

नई दिल्ली | 25 मई 2025

भारत अब फार्मा सेक्टर में चीन को सीधी टक्कर दे रहा है। अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए भारत की सीडीएमओ (Contract Development and Manufacturing Organization) कंपनियां वहां की तकनीकी रूप से सक्षम कंपनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। इससे चीन की पकड़ कमजोर हो रही है, जो कभी ग्लोबल फार्मा सप्लाई का बड़ा खिलाड़ी था।

हैदराबाद की सुवेन फार्मास्युटिकल्स ने हाल ही में अमेरिका की रिसर्च-बेस्ड कंपनी NJ Bio Inc में मेजॉरिटी हिस्सेदारी हासिल की है। यह कंपनी कैंसर की दवाइयों पर काम करती है। यह डील 65 मिलियन डॉलर यानी करीब 564 करोड़ रुपये में हुई है। इस अधिग्रहण के बाद सुवेन अब अमेरिका और यूरोप के मार्केट में अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी है।

इसी तरह, बायोकोन की सब्सिडियरी सिंजीन इंटरनेशनल ने अमेरिका की इमर्जेंट बायो सॉल्यूशंस कंपनी को खरीदा है। यह कंपनी प्रोटीन और जीन-आधारित दवाएं बनाती है। इस डील की कीमत 36.5 मिलियन डॉलर रही। सिंजीन के सीईओ पीटर बैंस ने कहा कि इस अधिग्रहण से अमेरिकी बाजार में उनकी पहुंच और कस्टमर बेस बढ़ेगा।

भारत की अन्य सीडीएमओ कंपनियां भी अमेरिका और यूरोप में ऐसी कंपनियों की तलाश कर रही हैं जिनका अधिग्रहण कर वे अपने उत्पादन की क्षमता बढ़ा सकें। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और यूरोप की कंपनियां अब चीन की बजाय भारत पर भरोसा कर रही हैं, क्योंकि चीन की ग्लोबल मार्केट में विश्वसनीयता घटी है।

इसके अलावा, अमेरिका और यूरोप चीन के साथ व्यापारिक और राजनीतिक तनाव के कारण अपनी फार्मा सप्लाई चेन में बदलाव चाहते हैं। ऐसे में भारत एक भरोसेमंद विकल्प बनकर उभरा है। भारत की बढ़ती भूमिका चीन के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है और यही रणनीति उसे ग्लोबल फार्मा पावर हाउस की दिशा में ले जा रही है।

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