Delhi

विवाह के बाद भी पति का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर क्रूरता नहीं : दिल्ली High Court

नई दिल्ली, 14 मई 2025

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति का विवाह के बाद कहीं और संबंध या अफेयर तब तक क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आता जब तक यह साबित न हो जाए कि इससे उसकी पत्नी को परेशान या पीड़ा हुई है या फिर व्यक्ति ने अपनी पत्नी के खिलाफ ही इसे किया हो।

पति-पत्नी के इसी मामले  में न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि विवाहेतर संबंध, कथित संबंध और दहेज की मांग के बीच संबंध न होने पर पति को दहेज और हत्या के लिए केस में फंसाने का आधार नहीं हो सकता। इसी के तहत दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले के अंतर्गत एक व्यक्ति को जमानत दे दी, जिसे शादी के लगभग पांच साल के भीतर 18 मार्च, 2024 को अपने ससुराल में अपनी पत्नी की अप्राकृतिक मृत्यु के बाद आईपीसी की धारा 498 ए (क्रूरता) / 304-बी (दहेज हत्या) के अलावा धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत एक मामले में गिरफ्तार किया गया था।

अदालत ने कहा, “अभियोजन पक्ष ने इस बात के संकेत देने के लिए सामग्री का सहारा लिया है कि आवेदक एक महिला के साथ विवाहेतर संबंध में शामिल था। जिसमें सबूतों के तौर पर कुछ वीडियो और चैट रिकॉर्ड का हवाला दिया गया है। हालांकि, यह मानते हुए भी कि ऐसा कोई संबंध था, कानून में यह तय है कि विवाहेतर संबंध, अपने आप में, धारा 498ए आईपीसी के तहत क्रूरता या धारा 306 आईपीसी के तहत उकसावे के दायरे में नहीं आता है, जब तक कि यह नहीं दिखाया जाता है कि मृतक को परेशान करने या पीड़ा पहुंचाने के लिए संबंध बनाए गए थे।”

फैसले में कहा गया, “विवाहेतर संबंध आरोपी को धारा 304बी आईपीसी के तहत फंसाने का आधार नहीं हो सकता। न्यायालय ने माना कि उत्पीड़न या क्रूरता को दहेज की मांग या निरंतर मानसिक क्रूरता से जोड़ा जाना चाहिए जो ‘मृत्यु से ठीक पहले’ हुई थी।” वह व्यक्ति मार्च 2024 से हिरासत में था, और न्यायालय ने कहा कि उसे लगातार हिरासत में रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। न्यायालय ने आगे कहा कि जांच पूरी होने के बाद आरोपपत्र दाखिल किया गया था और निकट भविष्य में मुकदमा समाप्त होने की संभावना नहीं है।

इसमें कहा गया कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ या न्याय से भागने का कोई खतरा नहीं था और यह अच्छी तरह स्थापित है कि जमानत देने का उद्देश्य न तो दंडात्मक था और न ही निवारक।

अदालत ने 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानतों पर उन्हें रिहा करने का निर्देश दिया। महिला के परिवार ने आरोप लगाया कि उसके पति का अपनी सहकर्मी के साथ संबंध था और जब इस बारे में बात की गई तो उसने महिला के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार किया। व्यक्ति पर यह भी आरोप लगाया गया कि वह अपनी पत्नी के साथ नियमित रूप से घरेलू हिंसा करता था तथा अपनी खरीदी गई कार के लिए अपने परिवार से EMI का भुगतान कराने के लिए उस पर दबाव डालता था।

अदालत ने कहा कि महिला या उसके परिवार द्वारा ऐसी कोई शिकायत उसके जीवित रहते नहीं की गई थी, इसलिए प्रथम दृष्टया दहेज संबंधी उत्पीड़न के दावे की तात्कालिकता और व्यावहारिकता कमजोर पड़ती है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button