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IC-814 हाईजैक: वो 8 दिन जब भारत की थम गई थीं सांसें, जानिए बिना गोली चले कैसे खत्म हुआ संकट

काठमांडू से दिल्ली जा रहे IC-814 विमान का हाईजैक भारत की सुरक्षा के इतिहास का सबसे बड़ा संकट बना, जहां आठ दिनों तक चले तनाव के बाद कूटनीति और रणनीति के सहारे 178 यात्रियों की जान बचाई गई

लखनऊ, 31 दिसंबर 2025:

काठमांडू से दिल्ली की ओर उड़ान भरते ही एक आम यात्रा अचानक भारतीय सुरक्षा इतिहास की सबसे यादगार घटनाओं में बदल गई। विमान जैसे ही वायुसीमा में दाखिल हुआ, आतंकियों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया और आठ दिन तक डर और खौफ का खेल जारी रहा। यह वही कहानी है जिसने पूरे देश की धड़कनें रोक दी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से नए पाठ भी लिखे। आइए विस्तार से समझते हैं ये पूरी कहानी…

भारतीय सुरक्षा के इतिहास का सबसे यादगार संकट

31 दिसंबर 1999 भारतीय सुरक्षा इतिहास का वह दिन है जिसे देश हमेशा याद रखेगा। इसी दिन आतंकवाद की दुनिया के तीन खतरनाक चेहरे-मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद को रिहा किया गया। लेकिन यह रिहाई आसान नहीं थी। साल 1999 के 24 दिसंबर को नेपाल के काठमांडू से उड़ान भरने वाले एयर इंडिया के प्लेन IC-814 को हाईजैक कर लिया गया था। इस विमान में 178 यात्री सवार थे और यह भारत की सीमा में प्रवेश करते ही आतंकियों के कब्जे में आ गया।

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35 कैदी और 200 मिलियन डॉलर की डिमांड

हाईजैक होने के बाद विमान अफगानिस्तान के कंधार में उतारा गया। आतंकियों ने शुरू में भारत से 35 कैदियों की रिहाई और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर नकद की मांग रखी। भारतीय प्रशासन ने सभी मांगें मानने से इंकार कर दिया, लेकिन स्थिति इतनी संवेदनशील थी कि किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई बेहद जोखिमभरी थी। तालिबान के लड़ाके प्लेन के चारों ओर तैनात थे और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के अधिकारी भी विमान में मौजूद थे, जिससे परिस्थितियों की जटिलता और बढ़ गई।

डोभाल की रणनीति ने टाला बड़ा संकट

भारत ने इस संकट का सामना कूटनीति और रणनीति के जरिए किया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कंधार पहुंचे और आतंकियों की मांगों को सीमित करने के लिए कई दौर की बातचीत की। अंततः, कठिन निर्णय लिया गया और केवल तीन आतंकियों-मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद की रिहाई में समझौता किया गया। यह निर्णय भारत के लिए आसान नहीं था, लेकिन यह सुनिश्चित किया गया कि अधिक लोगों की जान जोखिम में न पड़े।

1999 का ऐतिहासिक मोड़: रणनीति ने बचाई जानें

31 दिसंबर 1999 को हुई इस रिहाई ने न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ भारत की रणनीति पर असर डाला, बल्कि देश के लिए सुरक्षा और साहस का प्रतीक भी बन गई। IC-814 हाईजैक ने यह साबित किया कि संकट की घड़ी में कूटनीति, धैर्य और रणनीति की अहमियत कितनी बड़ी होती है।

आतंकवाद के खिलाफ रणनीति और साहस की सीख

आज भी IC-814 हाईजैक की घटना हमें याद दिलाती है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं, बल्कि समझदारी, योजना और साहस से भी जीती जा सकती है। यह दिन भारतीय सुरक्षा इतिहास में हमेशा एक निर्णायक और ऐतिहासिक मोड़ के रूप में याद रखा जाएगा।

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