नई दिल्ली, 1 मार्च 2025
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि रोहिंग्या बच्चे प्रवेश के लिए सरकारी स्कूलों से संपर्क कर सकते हैं और इनकार किए जाने की स्थिति में वे उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने उस याचिका का निपटारा कर दिया जिसमें दिल्ली सरकार के प्राधिकारियों को यूएनएचसीआर (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त) कार्ड धारक रोहिंग्या बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश देने का निर्देश देने की मांग की गई थी। पीठ ने एनजीओ ‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस से कहा, “हम चाहते हैं कि बच्चे पहले सरकारी स्कूलों का रुख करें। अगर उन्हें प्रवेश नहीं दिया जाता है तो वे उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं।” पीठ ने कहा कि उसने इसी राहत की मांग करने वाली एक अन्य जनहित याचिका पर भी इसी प्रकार का आदेश पारित किया था।
गोंजाल्विस ने कहा कि अदालत अपने आदेश में अपना निर्देश दर्ज कर सकती है, जिससे 500 छात्रों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। उन्होंने कहा, “मैं 2018 से इस मुद्दे के लिए लड़ रहा हूं और एक सीधे आदेश से अदालत 500 छात्रों को प्रवेश देगी।” पीठ ने कहा कि वह वही आदेश पारित कर रही है, जो उसने रोहिंग्या बच्चों के संबंध में इसी प्रकार की एक अन्य जनहित याचिका पर पारित किया था। पीठ ने कहा, ”हम चाहते हैं कि बच्चे आगे आकर आगे बढ़ें।” 12 फरवरी को शीर्ष अदालत ने कहा था कि शिक्षा पाने में किसी भी बच्चे के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को शहर में रोहिंग्या शरणार्थियों को सरकारी स्कूलों और अस्पतालों तक पहुंच प्रदान करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने यह जानना चाहा था कि ये शरणार्थी किस क्षेत्र में रह रहे हैं और उनका विवरण भी मांगा था।31 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने एनजीओ से कहा था कि वह अदालत को बताए कि शहर में रोहिंग्या शरणार्थी कहां बसे हैं और उन्हें क्या सुविधाएं उपलब्ध हैं।न्यायालय ने गोंसाल्वेस से दिल्ली में अपने निवास स्थान के बारे में बताते हुए एक हलफनामा दायर करने को भी कहा।
गोंजाल्विस ने कहा था कि एनजीओ ने रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सरकारी स्कूलों और अस्पतालों तक पहुंच की मांग की थी, क्योंकि आधार कार्ड न होने के कारण उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई थी।उन्होंने कहा, “वे शरणार्थी हैं जिनके पास यूएनएचसीआर कार्ड हैं, इसलिए उनके पास आधार कार्ड नहीं हो सकते। लेकिन आधार के अभाव में उन्हें सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है।”
गोंसाल्वेस ने कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थी दिल्ली के शाहीन बाग, कालिंदी कुंज और खजूरी खास इलाकों में रहते हैं।उन्होंने कहा, “शाहीन बाग और कालिंदी कुंज में वे झुग्गियों में रह रहे हैं, जबकि खजूरी खास में वे किराए के मकान में रह रहे हैं।” शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसने ये प्रश्न यह समझने के लिए पूछे थे कि क्या वे शिविरों में रहते हैं, क्योंकि राहत की प्रकृति जनहित याचिका में उल्लिखित राहत से भिन्न होगी। जनहित याचिका में प्राधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे सभी रोहिंग्या बच्चों को आधार कार्ड के बिना भी निशुल्क प्रवेश दें तथा उन्हें सरकार द्वारा पहचान पत्र मांगे बिना कक्षा 10वीं, 12वीं और स्नातक स्तर की सभी परीक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दें।
जनहित याचिका में रोहिंग्या परिवारों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं, अंत्योदय अन्न योजना के तहत उपलब्ध सब्सिडी वाले खाद्यान्न और खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाभ जैसे सभी सरकारी लाभ अन्य नागरिकों की तरह उपलब्ध कराने की मांग की गई है, चाहे उनकी नागरिकता कुछ भी हो।