
नई दिल्ली, 11 अगस्त 2025
क्या भारत ने अमेरिका में कोई गलती की है? जवाब है, हाँ। ऐसा लगता है कि अमेरिका में लॉबिंग के मामले में पाकिस्तान ने भारत से ज़्यादा चालाकी से काम लिया है। इन दोनों देशों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ इसका सबूत हैं। भारत पर लगाए गए टैरिफ, अतिरिक्त टैरिफ समेत, 50 प्रतिशत तक पहुँच गए हैं। वहीं, अमेरिका पाकिस्तान पर सिर्फ़ 19 प्रतिशत टैरिफ लगा रहा है। बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं है… हाल के कई घटनाक्रमों पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि पाकिस्तान अमेरिका के क़रीब पहुँच रहा है। यहीं लॉबिंग काम करती है।
भारत को डील से निराश :
ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से, कई देश अपने देशों की ओर से लॉबिंग करने के लिए ट्रंप की करीबी कंपनियों के साथ अनुबंध कर रहे हैं। भारत ने भी ट्रंप के पूर्व सलाहकार जेसन मिलर की कंपनी SHW पार्टनर्स के साथ 1.8 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष के भुगतान का अनुबंध किया है। जेसन ने 2016, 2020 और 2024 के चुनावों में ट्रंप के अभियान में अहम भूमिका निभाई थी। चूँकि जेसन की ट्रंप के साथ अच्छी दोस्ती है, इसलिए भारत को लगा कि वह उनके लिए लॉबिंग करने में मददगार साबित होंगे।
50 हज़ार डॉलर वाले पाकिस्तान के लिए परिणाम :
हमारे चचेरे भाई पाकिस्तान ने भी भारत का अनुसरण किया। लेकिन इतना भुगतान करने में असमर्थ होने के कारण, उसने ट्रंप के पूर्व अंगरक्षक कीथ शिलर की जैवलिन एसोसिएट्स के साथ 50,000 डॉलर प्रति माह देने का समझौता किया। गौरतलब है कि कीथ दो दशकों से ट्रंप के करीबी रहे हैं। अमेरिका के साथ मौजूदा संबंधों पर गौर करें तो लगता है कि भारत ने लॉबिंग में गलती की है। साथ ही, यह भी कहना होगा कि पाकिस्तान ने कम कीमत चुकाकर कई मामलों में बढ़त हासिल की है।
ट्रम्प के अहंकार को झटका?
लेकिन जानकारों का कहना है कि मौजूदा हालात को सिर्फ़ लॉबिंग तक सीमित नहीं रखना चाहिए। उनका मानना है कि इसमें ट्रंप का व्यक्तित्व भी अहम भूमिका निभाता है। ट्रंप किसी भी मुद्दे पर सीधे बात करना पसंद करते हैं और आसिम मुनीर उनसे सीधे मिल भी चुके हैं। वहीं, मोदी को ओवल ऑफिस बुलाया गया था, लेकिन वे नहीं गए। इसके अलावा, व्यापार सौदों पर सीधे फ़ोन पर बात करना ट्रंप की शैली है। मोदी की शैली ऐसे सभी मुद्दों को बातचीत करने वाली टीम पर छोड़ देने की है। एक तर्क यह भी है कि इन सब से ट्रंप के अहंकार को ठेस पहुँची होगी, इसीलिए वे पाकिस्तान के क़रीब जा रहे हैं।
यदि हम मिलते भी हैं तो परिणाम संदिग्ध होंगे :
हालाँकि, अगर आप ट्रंप से सीधे मिलते भी हैं, तो भी सब कुछ योजना के अनुसार नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने ट्रंप और जेडी वेंस से सीधे मुलाकात की, लेकिन उन्हें लाइव अपमानित किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। दक्षिण अफ़्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा का भी ऐसा ही अनुभव रहा। स्विस राष्ट्रपति करिन केलर सटर सीधे वाशिंगटन आईं, लेकिन ट्रंप समेत किसी भी नेता ने उनसे मुलाकात नहीं की। उन्हें विदेश मंत्री से मिलने के बाद वापस लौटना पड़ा, जिनका व्यापार पर कोई अधिकार नहीं है। हालाँकि, मेक्सिको की क्लाउडिया शीनबाम और वियतनाम की लो टैम ने ट्रंप को सीधे फ़ोन करके उनसे बात की, और उन्हें कुछ राहत मिली।
इसका मतलब यह है कि अगर ट्रंप से सीधे मुलाक़ात भी हो जाए, तो भी यह कहना नामुमकिन है कि नतीजे क्या होंगे। ऐसे समय में लॉबिंग अहम भूमिका निभाती है। बताया जाता है कि अकेले इसी साल लगभग 30 देशों ने अमेरिका की पैरवी करने के लिए नए संगठनों और व्यक्तियों के साथ समझौते किए हैं। इनमें से पाकिस्तान, शिलर टीम के साथ मिलकर अपने टैरिफ कम करवाने में कामयाब रहा। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इतना बड़ा समझौता करने के बावजूद, मिलर भारत को इस मामले में राहत नहीं दिला पाए।






