
हरेन्द्र दुबे
गोरखपुर, 9 दिसम्बर 2024:
आज की डिजिटल दुनिया में बच्चों का बचपन स्मार्टफोन की चकाचौंध में खोता जा रहा है। गोरखपुर से मिली एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने अभिभावकों और समाज के सामने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बदलता बचपन, बदलती प्राथमिकताएं
रविवार की सुबह, जब बच्चों को खेल-कूद और मनोरंजक गतिविधियों में व्यस्त होना चाहिए था, वे स्मार्टफोन की स्क्रीन में खोए नजर आए। सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक, न खाने की सुध, न पीने की चिंता – बस मोबाइल गेम्स और कार्टून में डूबे रहे।
अभिभावकों की भूमिका पर सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या की जड़ में अभिभावकों का वह गर्व छिपा है, जो अपने छोटे बच्चों को मोबाइल चलाते देख खुशी महसूस करते हैं। “मेरा बच्चा कितना स्मार्ट है” की सोच के चलते वे अपने मासूम बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन थमा देते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
डॉ. रमेश कुमार, बाल रोग विशेषज्ञ के अनुसार, “लंबे समय तक मोबाइल स्क्रीन देखने से बच्चों की आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही उनके मानसिक विकास और सामाजिक कौशल भी प्रभावित होते हैं।”
समाधान की दिशा में
स्थानीय शिक्षाविद् डॉ. सुनीता शर्मा का मानना है कि बच्चों को मोबाइल की लत से बचाने के लिए अभिभावकों को उनके मोबाइल उपयोग का समय निर्धारित करना चाहिए। इसके साथ ही शारीरिक गतिविधियों को प्राथमिकता देने, पारिवारिक समय बढ़ाने और पठन-पाठन को प्रोत्साहित करने पर जोर देना चाहिए। यह न केवल बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि उनके सामाजिक कौशल को भी बढ़ावा देगा।
जागरूकता की आवश्यकता
गोरखपुर के समाज सेवी राजेश सिंह कहते हैं, “यह समस्या केवल एक परिवार या शहर की नहीं है। पूरे देश में बच्चों के बीच मोबाइल की लत बढ़ती जा रही है। इससे निपटने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान की जरूरत है।”
आगे की राह
विशेषज्ञों का मानना है कि अभिभावकों को बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताने पर जोर देना चाहिए। इसके साथ ही खेल और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर उनके स्वास्थ्य और विकास को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। पारंपरिक खेलों और कलाओं को बढ़ावा देना बच्चों की रचनात्मकता और सांस्कृतिक जुड़ाव को मजबूत कर सकता है। इसके अलावा, डिजिटल उपकरणों के उपयोग पर नियंत्रण रखते हुए, बच्चों को तकनीक के सकारात्मक और संतुलित उपयोग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
तकनीकी विकास के साथ-साथ हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के स्वस्थ विकास पर भी ध्यान देना होगा। यह समय की मांग है कि हम तकनीक का उपयोग करें, लेकिन उसके दुष्प्रभावों से बच्चों को बचाएं।






