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कैश कांड में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा दोषी, सुप्रीम कोर्ट पैनल ने हटाने की सिफारिश की

ankit vishwakarma
Last updated: June 20, 2025 5:54 pm
ankit vishwakarma 3 months ago
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नई दिल्ली, 20 जून 2025

सरकारी आवास जले हुए नोटों के ढेरों से सामने आए कैश कांड के बाद विवादों में आए न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की मुश्किलें अब और भी बढ़ने वाली है। हाल ही में इस मामले की जांच करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त जांच समिति ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के संबंध में जांच कर उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की है, समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि दिल्ली में उनके सरकारी आवास के स्टोर रूम से वास्तव में ‘नकदी के बंडल’ बरामद हुए थे और बाद में उन्हें संदिग्ध परिस्थितियों में हटा दिया गया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ” जांच समिति इस बात पर सहमत है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के 22 मार्च के पत्र में उठाए गए आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं और सिद्ध पाया गया कदाचार इतना गंभीर है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए कार्यवाही शुरू करने की आवश्यकता है।” उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट पैनल ने 4 मई को तत्कालीन सीजेआई को अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए थे।

विवाद की शुरुआत 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के तुगलक रोड स्थित बंगले में लगी आग से हुई, जिसके बाद दो दमकल गाड़ियों को मौके पर भेजा गया। दमकलकर्मियों ने आग पर तुरंत काबू पा लिया, लेकिन स्टोररूम में स्टेशनरी और घरेलू सामान के बीच जले हुए नोट मिले। इस घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश फैल गया और न्यायिक जांच की गई।

तीन सदस्यीय जांच पैनल, जिसमें मुख्य न्यायाधीश शील नागू (पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय), जी.एस. संधावालिया (हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय) और अनु शिवरामन (कर्नाटक उच्च न्यायालय) शामिल थे, ने पाया कि नकदी, जो कथित तौर पर 1.5 फीट ऊंची ढेर में रखी गई थी, को स्टोररूम में रखा गया था और घटना के कुछ घंटों बाद 15 मार्च की सुबह परिसर से बाहर निकाल लिया गया था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कमरे में केवल जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के लोगों को ही जाने की अनुमति थी। रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि जज का आचरण “अप्राकृतिक” था, खास तौर पर पुलिस में शिकायत दर्ज न कराना या वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों को सूचित न करना, यह एक ऐसी चूक थी जिसने उनकी भूमिका पर और भी संदेह पैदा कर दिया।

25 मार्च से 27 अप्रैल के बीच दिल्ली के हरियाणा स्टेट गेस्ट हाउस में कई बार बैठक करने वाली समिति ने 55 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिनमें जस्टिस वर्मा खुद भी शामिल थे। कई गवाहों ने आवास के अंदर बड़ी मात्रा में नकदी की मौजूदगी की पुष्टि की। उल्लेखनीय है कि जज ने अपनी गवाही के दौरान विरोधाभासी बयान दिए, जिससे उनकी विश्वसनीयता कमज़ोर हुई।

न्यायमूर्ति वर्मा के निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की और उनकी बेटी दीया वर्मा की भूमिका पर विशेष संदेह जताया गया। कार्की ने कथित तौर पर अग्निशमन कर्मियों को अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में नकदी का उल्लेख न करने का निर्देश दिया और अगले दिन साइट की सफाई में मदद की। हालांकि उन्होंने आरोपों से इनकार किया, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और अन्य गवाहियों ने इसके विपरीत संकेत दिया।

समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा आग लगने के मात्र छह दिन बाद ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपने स्थानांतरण को तुरंत और बिना किसी सवाल के स्वीकार करने पर भी गौर किया। इससे पहले, आंतरिक प्रक्रिया के अनुसार, पूर्व मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का 6 मई को दिया गया जवाब संलग्न किया था।

अगर समिति की सिफ़ारिशों पर अमल किया जाता है, तो न्यायपालिका ऐतिहासिक मोड़ पर पहुँच सकती है। स्वतंत्र भारत में किसी भी न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया है, हालाँकि पाँच मामलों में, जिनमें सबसे हाल ही में 2018 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा शामिल थे, महाभियोग औपचारिक रूप से शुरू किया गया था, लेकिन पूरा नहीं हुआ।

 

 

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