
तकलाकोट (चीन-तिब्बत सीमा), 9 जुलाई 2025
कैलास मानसरोवर यात्रा के तीसरे चरण में हम नेपाल के सिमिकोट से हेलिकॉप्टर के जरिए 14,000 फीट ऊंचे हिलसा पहुंचे। यह नेपाल का सीमावर्ती गांव है, जहां से करनाली नदी चीन और नेपाल की सीमा बनाती है। इस नदी को पार करने के लिए एक पैदल पुल है, जिसे पार कर यात्री तिब्बत (चीन) में प्रवेश करते हैं।
हिलसा में स्थानीय लोगों की जीविका यात्रियों की सेवा पर टिकी है—चाय, नाश्ता और ऊन की दुकानें हर जगह दिखती हैं। यहां से हमारी यात्रा चीन के सीमावर्ती शहर तकलाकोट की ओर बढ़ी, जहां चीनी सैनिकों से हमारा पहला सामना हुआ। उनकी कठोरता और दलाई लामा के प्रति नाराजगी साफ दिखाई दी। एक अधिकारी ने मेरी किताबें देखकर पूछा कि उनमें दलाई लामा का चित्र तो नहीं है। मैंने जवाब दिया, “किताब में नहीं, दिल में है।” चीन में दलाई लामा की तस्वीर रखना अपराध है और इसके लिए 10 साल की सजा का प्रावधान है।
चीन में भारतीय मुद्रा प्रतिबंधित है। पासपोर्ट, परमिट और बैग की गहन जांच के बाद हमें तकलाकोट में प्रवेश मिला। यहां समय भारत से ढाई घंटे आगे है। इस शहर में कभी भारतीय व्यापारियों का बोलबाला था, लेकिन 1962 के युद्ध के बाद वह सीमित हो गया। अब यहां 30-40 भारतीय दुकानदार ही बचे हैं।
हमारे तिब्बती ड्राइवर ने “बम भोले, हर-हर महादेव” कहकर स्वागत किया। भाषा की दीवार के बावजूद स्थानीय लोग ‘ॐ नमः शिवाय’ का उच्चारण करके जुड़ाव दिखाते हैं। चीन की सख्ती के बावजूद तिब्बतियों के मन में दलाई लामा और अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रति अपार सम्मान है। यह आग अभी बुझी नहीं है।
तिब्बती चाय में नमक और याक के दूध का मक्खन होता है—यह स्वाद मेरे लिए नया था, पर भाईचारे के लिए पीना पड़ा। यहां महिलाएं पुरुषों से अधिक जिम्मेदार नजर आईं, समाज को संभालती हुईं। यह चरण सिर्फ तीर्थ नहीं, तिब्बत की हकीकत से साक्षात्कार था।