
प्रयागराज,25 दिसंबर 2024
प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि माना जाता है, जहां महर्षि दुर्वासा ने भी तपस्या की थी। पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण समुद्र मंथन हुआ था, जिससे देवता शक्तिहीन हो गए थे। महर्षि दुर्वासा ने भगवान इंद्र को श्राप दिया था, क्योंकि इंद्र ने उनकी दी हुई माला को अपमानित किया था। इसके बाद, देवताओं को शक्ति पुनः प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करना पड़ा, जिससे अमृत की प्राप्ति हुई।
महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र में ककरा दुबावल गांव के पास स्थित है, जहां उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की थी। यहां एक प्राचीन शिवलिंग है, जिसे महर्षि दुर्वासा ने स्वयं स्थापित किया था। मंदिर में महर्षि की प्रतिमा, साथ ही अत्रि ऋषि, माता अनसूइया, भगवान दत्तात्रेय और अन्य देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। पर्यटन विभाग ने इस आश्रम का जीर्णोद्धार किया है, और महाकुंभ के दौरान श्रद्धालु यहां शिवलिंग की पूजा करने आते हैं।