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इस विधि से करें मत्स्य द्वादशी की पूजा, खुल जाती हैं किस्मत की राहें, जानिए मत्स्य अवतार का रहस्य

मत्स्य द्वादशी मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य रूप की पूजा के रूप में मनाई जाती है।

लखनऊ, 2 दिसंबर 2025 :

हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हर साल मत्स्य द्वादशी मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य अवतार को समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन श्री हरि विष्णु की सच्चे मन से पूजा करने पर भक्तों को कई गुना अधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस साल मत्स्य द्वादशी 2 दिसंबर 2025 को मनाई जा रही है, और भक्त इस विशेष दिन पर भगवान विष्णु की आराधना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

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Matsya Dwadashi Puja Method & the Secret of Matsya Avatar

क्या है मत्स्य द्वादशी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त?

मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि की शुरुआत 1 दिसंबर 2025 को शाम 7 बजकर 1 मिनट से हुई और यह तिथि 2 दिसंबर 2025 को दोपहर 3 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी। व्रत पारण का समय 3 दिसंबर की सुबह 6 बजकर 57 मिनट से 9 बजकर 9 मिनट तक रहेगा। भक्त इस मुहूर्त के भीतर व्रत पारण कर सकते हैं।

क्या है मत्स्य अवतार की कथा?

मत्स्य अवतार की कथा में बताया गया है कि जब पृथ्वी पर भयंकर प्रलय आने वाला था, तब भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत मनु को एक बड़ी नाव बनाने और उसमें जीवों के बीज, अनाज, औषधियां और सप्त ऋषियों को साथ लेने का आदेश दिया। विष्णु जी एक छोटी मछली के रूप में प्रकट हुए और धीरे-धीरे विशाल रूप धारण कर लिया। प्रलय शुरू होने पर मनु ने अपनी नाव को मछली के सींग से बांध दिया और भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में उनकी रक्षा करते हुए नाव को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। प्रलय के अंत में विष्णु जी ने हयग्रीव का वध कर वेदों को वापस ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इस पूरी कथा का वर्णन मत्स्य पुराण में विस्तार से मिलता है।

मत्स्य द्वादशी की पूजा विधि क्या है?

मत्स्य द्वादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करना और साफ वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। पूजा शुरू करने से पहले मंदिर या पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। इसके बाद एक चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित की जाती है। भक्त फूल, अक्षत्, धूप, दीप, नैवेद्य और अन्य पूजा सामग्री श्री हरि के चरणों में अर्पित करते हैं।

“केशवाय नमस्तुभ्यम्” मंत्र का उच्चारण करते हुए घृत मिश्रित तिल की 108 आहुतियां अग्नि में अर्पित की जाती हैं। पूजा के बाद रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है। रात में भगवान विष्णु के सामने एक सेर दूध से अभिषेक किया जाता है। इसके साथ ही भजन, कीर्तन और भगवान नारायण व माता लक्ष्मी की तीनों समय पूजा की जाती है। पूजा पूर्ण होने पर भक्त दक्षिणा, खीर और नारियल ब्राह्मण को दान करते हैं, जिससे व्रत का फल पूर्ण माना जाता है। मत्स्य द्वादशी का यह व्रत भक्तों को आध्यात्मिक शांति, मनोकामना सिद्धि और दिव्य आशीर्वाद प्रदान करने वाला माना जाता है।

_डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। Thehohalla इसकी पुष्टि पर कोई दावा नहीं करता है।_

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