देवेंद्र प्रताप सिंह
सरोजनीनगर (लखनऊ), 12 दिसंबर 2025:
राजधानी के लोकबंधु अस्पताल में सरकारी नियमों और हिदायतों की खुलेआम अनदेखी हो रही है। अस्पताल की ओपीडी में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (एमआर) बेधड़क घूमते नजर आते है। डॉक्टरों की मेजों पर प्राइवेट कंपनियों की दवाओं के ब्रोशर सजे रहते है और ओपीडी समय में ही डॉक्टरों को दवाओं का प्रचार होता रहता है। यह स्थिति तब है जब सरकार साफ निर्देश जारी कर चुकी है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर बाहर की प्राइवेट या महंगी ब्रांडेड दवाएं नहीं लिखेंगे। उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई से लेकर निलंबन तक का प्रावधान है।
लोकबंधु अस्पताल में आने वाले अधिकांश मरीज आर्थिक रूप से कमजोर तबके से होते हैं। ऐसे में डॉक्टरों द्वारा बाहर की दवाएं लिखने से मरीजों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। जबकि अस्पताल में यूपी मेडिकल सप्लाई कॉरपोरेशन द्वारा भेजी गई 200 से अधिक दवाएं उपलब्ध हैं, साथ ही पास में जन औषधि केंद्र भी मौजूद है जहां जेनेरिक दवाएं कम कीमत पर मिलती हैं।

इसका सच जानने के लिए ‘द हो हल्ला’ ने जायजा लिया तो कैमरे में असलियत कैद होती गई। डॉक्टरों की टेबल पर प्राइवेट कंपनियों के ब्रोशर रखे मिले। ओपीडी टाइम में डॉक्टर एमआर से दवाओं पर चर्चा करते दिखे कई डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन में सरकारी दवाओं के साथ अलग सादी पर्ची पर ब्रांडेड दवाएं भी लिख रहे हैं।
इस पूरे मामले पर लोकबंधु अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अजय शंकर त्रिपाठी ने कहा सरकारी अस्पतालों में बाहर की दवा लिखने पर सख्त रोक है। केवल अत्यधिक आवश्यकता होने पर ही जन औषधि केंद्र की जेनेरिक दवा लिखी जा सकती है। हमारे निदेशक के साफ लिखित आदेश हैं कि अस्पताल से बाहर की कोई दवा न लिखी जाए। समय-समय पर इसकी पड़ताल भी की जाती है। एमआर के अस्पताल में प्रवेश को लेकर उन्होंने कहा अस्पताल में एमआर की कोई आवश्यकता नहीं है और उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं है। वे केवल किसी मरीज के साथ ही आ सकते हैं। इस पर कड़ी नजर रखी जाती है।
फिलहाल हकीकत अलग तस्वीर दिखाती है। लोकबंधु अस्पताल में दिखाई दे रहा दृश्य बताता है कि निगरानी और निर्देशों के बावजूद एमआर बेखौफ अस्पताल परिसर में घूम रहे हैं और डॉक्टरों को अपनी दवाओं का प्रचार कर रहे हैं। इससे साफ है कि अस्पताल प्रशासन की निगरानी व्यवस्था नाकाफी है और मरीजों के हितों की सीधी अनदेखी हो रही है। यह स्थिति सिर्फ लोकबंधु अस्पताल तक सीमित नहीं है, बल्कि कई सरकारी अस्पतालों में इसी तरह ब्रांडेड दवाओं के प्रचार और कमीशन आधारित प्रिस्क्रिप्शन का खेल बेखटके चलता रहता है।






