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जन्मदिन विशेष: कड़वाहट में बीता बचपन…फ्लॉप रही पहली फिल्म! जानिए मेघना गुलजार का फिल्मी सफर

मेघना गुलजार ने बचपन की पारिवारिक चुनौतियों और टूटते रिश्तों के बीच पले-बढ़े होने के बावजूद अपने हुनर और दृढ़ता से फिल्म इंडस्ट्री में मजबूत जगह बनाई

मनोरंजन डेस्क, 12 दिसंबर 2025 :

रिश्तों की कड़वाहट के बीच किसी मासूम के जन्म की मिठास अक्सर दब जाती है। लेकिन गुलजार की जिंदगी में मेघना का जन्म रोशनी की तरह आया। जब घर में पति-पत्नी के बीच अनबन थी, तब उन्होंने अपनी बेटी को अपनी कविताओं की तरह संभाला, शब्दों की तरह सहेजा। और आज मेघना उसी संवेदनशीलता को पर्दे पर उतारने वाली एक बेमिसाल निर्देशक हैं।

जन्म के समय माता-पिता में थी अनबन

भारतीय सिनेमा की जानी-मानी निर्देशक, लेखिका और निर्माता मेघना गुलजार आज अपना 52वां जन्मदिन मना रही हैं। मशहूर लेखक, शायर और फिल्मकार गुलजार और अभिनेत्री राखी की बेटी होने के बावजूद मेघना ने अपने दम पर फिल्म इंडस्ट्री में मजबूत जगह बनाई है। 13 दिसंबर 1973 को पैदा हुई मेघना का जन्म ऐसे समय में हुआ जब उनके माता-पिता के रिश्ते में खिंचाव लगातार बढ़ रहा था, लेकिन यह बच्ची आगे चलकर उसी माहौल से निकलकर अपना अलग मुकाम बनाने वाली निकली।

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मां ने नदी के नाम पर रखा नाम

मेघना के नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। जन्म के बाद उनकी मां राखी ने उनका नाम बांग्लादेश की प्रसिद्ध नदी ‘मेघना’ के नाम पर रखा। राखी के पिता ईस्ट बंगाल के महेरपुर में कारोबार करते थे और नदी से उनका विशेष जुड़ाव था। इसी भावनात्मक संबंध के चलते उन्होंने अपनी बेटी का नाम भी उसी नदी के नाम पर रख दिया।

पिता ने अकेले निभाई परवरिश की जिम्मेदारी

मेघना के जन्म के समय ही उनके माता-पिता के बीच मतभेद इतने बढ़ गए थे कि दोनों ने जल्द ही अलग रहने का फैसला कर लिया। हालांकि, उन्होंने आधिकारिक तौर पर तलाक नहीं लिया और मेघना की परवरिश की जिम्मेदारी मुख्य रूप से गुलजार ने संभाली। मेघना ने अपनी किताब ‘बिकॉज ही इज’ में लिखा है कि उनके पिता ने उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि उनके जीवन में मां की कमी है। स्कूल ले जाने से लेकर हर छोटी-बड़ी जरूरत तक गुलजार ही उनके लिए परिवार बन गए। पिता-बेटी का यही गहरा रिश्ता उन्हें आज भी ‘बोस्की’ नाम से पुकारे जाने में झलकता है।

पहली फिल्म फ्लॉप, लेकिन वापसी रही शानदार

फिल्मों का सफर मेघना ने वर्ष 2000 में बनी शॉर्ट फिल्म ‘शाम से आंख में नमी है’ से शुरू किया था। इससे पहले वह गुलजार की फिल्मों ‘माचिस’ और ‘हूतूतू’ में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम कर चुकी थीं। 2002 में आई उनकी पहली फीचर फिल्म ‘फिलहाल’ बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हो पाई, लेकिन मेघना ने हिम्मत नहीं हारी। करीब बारह साल बाद उन्होंने फिल्म ‘तलवार’ के साथ मजबूत वापसी की और इसके बाद ‘गिल्टी’ तथा ‘राजी’ जैसी शानदार फिल्मों ने उन्हें इंडस्ट्री में एक सशक्त निर्देशक के रूप में स्थापित कर दिया। ‘राजी’ के लिए उन्हें बेस्ट डायरेक्टर का फिम फेयर अवॉर्ड भी मिला।

छपाक से सैम बहादुर तक मिली व्यापक सराहना

मेघना की बाद की फिल्मों में ‘छपाक’ और ‘सैम बहादुर’ शामिल हैं, जिन्हें आलोचकों और दर्शकों दोनों से सराहना मिली। बचपन की कठिन परिस्थितियों और पारिवारिक टूटन के बावजूद मेघना ने अपने हुनर और मेहनत के बल पर न केवल सिनेमा में नई पहचान बनाई, बल्कि यह भी साबित किया कि संघर्ष हमेशा मजबूती बनकर उभर सकता है।

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