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एक व्रत और सात पीढ़ियों का मोक्ष! जानिए क्यों खास है मोक्षदा एकादशी

कहा जाता है कि मोक्षदा एकादशी पर रखा गया उपवास सिर्फ पाप ही नहीं, जन्मों का बोझ भी हल्का कर देता है। इसीलिए इसे सबसे शक्तिशाली एकादशी माना गया है।

लखनऊ, 1 दिसंबर 2025 :

मोक्षदा एकादशी हिंदू धर्म की सबसे पवित्र और शुभ तिथियों में से एक मानी जाती है। यह व्रत हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की आराधना के लिए विशेष माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा और नियमों के साथ पूजा-उपवास करने से भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

शास्त्रों में इस एकादशी को ‘मोक्ष दिलाने वाली एकादशी’ कहा गया है। यही नहीं, इसी दिन श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश प्रकट हुआ था, जिसके कारण इसे पूरे देश में गीता जयंती के रूप में भी हर्ष और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

क्या है एकादशी की तारीख और व्रत का समय?

वैदिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 30 नवंबर को रात 09 बजकर 29 मिनट पर हुई। इस एकादशी तिथि का समापन 01 दिसंबर यानी आज रात 07 बजकर 01 मिनट पर होगा। ऐसे में मोक्षदा एकादशी का व्रत आज रखा जा रहा है। इस व्रत का पारण 02 दिसंबर को किया जाएगा। व्रत का पारण करने का शुभ मुहूर्त 06 बजकर 51 मिनट से 09 बजकर 04 मिनट तक है। इस दौरान किसी भी समय व्रत का पारण किया जा सकता है।

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क्यों कठिन माने जाते हैं इस व्रत के नियम?

मोक्षदा एकादशी उन व्रतों में से है जिन्हें बेहद कड़ा और अनुशासित माना जाता है। इस दिन भक्त अन्न, चावल, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करते। धार्मिक विश्वास है कि एकादशी के दिन चावल खाने से अगले जन्म में कीड़े-मकोड़ों की योनि प्राप्त होती है। इसलिए इस दिन केवल फलाहार या कई लोग निर्जला उपवास भी करते हैं।

रात भर जागरण भी इस व्रत का एक अहम हिस्सा होता है। भक्त पूरी रात भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन में व्यस्त रहते हैं, जिससे शारीरिक थकान के साथ कठोर अनुशासन का पालन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा, मानसिक पवित्रता भी अनिवार्य है। व्रत रखने वाले को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और क्रोध, झूठ, निंदा व नकारात्मक विचारों से स्वयं को दूर रखना पड़ता है।

मोक्ष प्राप्ति में क्यों सहायक माना जाता है यह व्रत?

शास्त्रों में वर्णित है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने पर व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, भक्त के पितरों को भी इस व्रत का पुण्य मिलता है। यह दिन इसलिए भी विशेष बन जाता है क्योंकि यही वह तिथि है जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। पढ़िए पुरी खबर

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