
अनमोल शर्मा
मेरठ,12 फरवरी 2025:
यूपी के मेरठ के सिविल लाइंस थाने में तैनात एसएसआई मुन्नेश सिंह, जिन्होंने 25 से अधिक एनकाउंटर में अपनी वीरता का परिचय दिया और राष्ट्रपति वीरता पदक से सम्मानित हुए, आज अपने मन की अशांति लेकर संत प्रेमानंद महाराज के चरणों में पहुंचे। 24 जनवरी 2024 को एक एनकाउंटर के दौरान उनके सीने में लगी गोली ने उन्हें मौत के करीब पहुंचा दिया। 11 दिन आईसीयू में संघर्ष के बाद वे बच तो गए, लेकिन उनका मन अब “देश सेवा” और “आत्मिक शांति” के बीच डोलने लगा ।
संत का सुझाव: कर्मयोग से भक्तियोग की ओर
मथुरा में संत प्रेमानंद महाराज से मिलकर मुन्नेश ने अपनी व्यथा साझा की:
“महाराज जी! मैंने 32 साल देश को दिए, लेकिन अब मन अशांत है। क्या इसी पद पर चलता रहूँ या भगवान के चरणों में समर्पित हो जाऊँ?”
संत प्रेमानंद ने उन्हें समझाया: “आधा जीवन देश को दे चुके हो, अब शेष जीवन ईश्वर को समर्पित करो। सेवा में हुई चूक के लिए प्रार्थना करो, युवाओं को मार्गदर्शन दो, और समाज में धर्म का प्रकाश फैलाओ” ।
जीवन के पाठ: कर्म और धर्म का सहज संगम
1. अहिंसा का संदेश: संत ने कालयवन और मुचकुंद की कथा सुनाकर समझाया कि हिंसा से मुक्ति पाने के लिए भक्ति ही एकमात्र मार्ग है ।
2. समाज सेवा का नया अध्याय: महाराज ने सलाह दी कि रिटायरमेंट के बाद युवा पुलिसकर्मियों को नैतिक मूल्य सिखाएं और समाज में सद्भाव फैलाएं ।
3. प्रायश्चित का महत्व: “प्रार्थना और सत्संग से मन की ग्लानि दूर होती है। भगवान की कृपा से हर पाप धुल जाता है” ।
आगे का रास्ता: वीरता से विरक्ति तक
मुन्नेश सिंह अब संत के शब्दों को जीवन का आधार बना रहे हैं। रात की ड्यूटी के बाद वे प्रेमानंद महाराज के प्रवचन सुनते हैं और मन को शांति देने की कोशिश करते हैं। जैसे संत प्रेमानंद ने कहा:
“जीवन का उद्देश्य केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि है।”