
कोलकाता, 12 अगस्त 2025
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विदेशी धरती से भारत की आजादी के लिए अभूतपूर्व लड़ाई लड़ी। 1939 में महात्मा गांधी की इच्छा के विपरीत दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद उनके और गांधीजी के मतभेद गहरे हो गए। गांधीजी ने इस जीत को अपनी हार माना, और जल्द ही सुभाष को पद से इस्तीफा देना पड़ा। जेल में रहते हुए बोस इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अंग्रेज केवल सशस्त्र संघर्ष से ही देश छोड़ेंगे। 1940 में उन्होंने गांधीजी को बिना शर्त सहयोग की पेशकश की, लेकिन गांधीजी ने साफ कहा कि हमारे मतभेद बुनियादी हैं और रास्ते अलग ही रहेंगे।
इसके बाद सुभाष बोस ने स्वदेश छोड़कर विदेश में सैन्य ताकत जुटाने की ठानी। उन्होंने जर्मनी और जापान में समर्थन हासिल किया और आजाद हिंद फौज (INA) का नेतृत्व संभाला। 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर में उन्होंने INA के सुप्रीम कमांडर के रूप में सलामी ली और ऐतिहासिक नारा दिया — “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”। सशस्त्र संघर्ष के जरिए भारत की ओर बढ़ते हुए बोस ने देशवासियों में जोश और आत्मबल का संचार किया, जो आज भी स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अद्वितीय है।






