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Reading: उत्तराखंड में नया विधेयक, जबरन धर्म परिवर्तन पर आजीवन कारावास, 10 लाख का जुर्माना भी
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Uttrakhand

उत्तराखंड में नया विधेयक, जबरन धर्म परिवर्तन पर आजीवन कारावास, 10 लाख का जुर्माना भी

ankit vishwakarma
Last updated: August 16, 2025 10:31 am
ankit vishwakarma 4 weeks ago
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देहरादून, 16 अगस्त 2025

धर्मांतरण विरोधी कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध उत्तराखंड सरकार ने एक विधेयक पेश करने का फैसला किया है, जिसमें जबरन धर्म परिवर्तन के लिए आजीवन कारावास और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार लव जिहाद के आरोपों से जुड़े कानून को और भी सख्त बनाने की तैयारी में है। धामी कैबिनेट ने एक नए संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस संशोधन विधेयक में जबरन धर्मांतरण के मामले में दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है।

बताया जा रहा है कि उत्तराखंड सरकार मानसून सत्र में इसे पेश करेगी और 19 अगस्त से विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होगा और बताया जा रहा है कि इसी अवसर पर यह विधेयक पेश किया जाएगा।

संशोधन विधेयक, अभियुक्तों की संपत्ति जब्त करने की अनुमति देता है :

उत्तराखंड में मौजूदा कानून के तहत जबरन धर्मांतरण के मामलों में 10 साल की जेल और 50,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। नए कानून में इसे बढ़ाकर 14 साल कर दिया गया है। कुछ मामलों में सजा को 20 साल तक बढ़ाया जा सकता है। संशोधित विधेयक में पुलिस को बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया है। साथ ही, धर्मांतरण से जुड़े अपराध के ज़रिए अर्जित संपत्ति भी ज़ब्त की जा सकेगी।

नये विधेयक में क्या है?

नए विधेयक में, अभियुक्त को बिना वारंट के भी गिरफ्तार किया जा सकेगा। इस विधेयक में सभी अपराधों को गैर-जमानती बना दिया गया है। कुछ मामलों में, ज़मानत तभी दी जाएगी जब अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाएगी कि अभियुक्त दोषी नहीं है और दोबारा ऐसा अपराध नहीं करेगा।

इसी तरह, प्रस्तावित विधेयक में, यदि धर्मांतरण से संबंधित अपराधों के माध्यम से कोई संपत्ति अर्जित की गई है, तो जिला कलेक्टर उसे जब्त कर सकते हैं। नए विधेयक में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी मजिस्ट्रेट को लगता है कि इस कानून के तहत किसी अपराध के माध्यम से कोई संपत्ति अर्जित की गई है, तो वह उसे जब्त करने का आदेश दे सकता है, भले ही अदालत ने ऐसे अपराध का संज्ञान लिया हो या नहीं।

 

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