मुंबई, 22 जून 2025
यौन उत्पीड़न पीड़िता के पक्ष में एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि, यौन उत्पीड़न की शिकार किसी भी लड़की को उसके अवांछित गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। वहीं इस फैसले के साथ ही हाईकोर्ट ने चिकित्सा विशेषज्ञों की प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद 12 वर्षीय लड़की को 28 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दे दी। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है तो अदालत उसे “अपने जीवन का मार्ग” तय करने के अधिकार से वंचित कर देगी।
लड़की की जांच के बाद एक मेडिकल बोर्ड ने राय दी थी कि लड़की की उम्र और भ्रूण के विकास के चरण को देखते हुए, गर्भपात की प्रक्रिया अत्यधिक जोखिम भरी होगी। हालांकि, न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति सचिन देशमुख की पीठ ने 17 जून के अपने आदेश में कहा कि गर्भपात की अनुमति देनी होगी।
हाईकोर्ट ने कहा, “यह अदालत पीड़िता को उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भधारण करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती, क्योंकि ऐसी स्थिति में राज्य उससे उसके जीवन का तात्कालिक और दीर्घकालिक मार्ग तय करने के अधिकार को छीन लेगा।” अदालत ने कहा, “हमें इस तथ्य के प्रति भी समान रूप से संवेदनशील होना चाहिए कि एक महिला अपनी वैवाहिक स्थिति के बावजूद अपनी इच्छा से गर्भवती हो सकती है; हालांकि, अवांछित या आकस्मिक गर्भावस्था के मामले में, इसका भार अनिवार्य रूप से गर्भवती महिला/पीड़ित पर ही पड़ता है।”
लड़की के साथ उसके चाचा ने यौन उत्पीड़न किया था, जिसके बाद उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। लड़की के पिता ने यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। अदालत ने गर्भपात की अनुमति देते हुए कहा कि प्रक्रिया के दौरान सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई जटिलता उत्पन्न न हो।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया एक बाल रोग विशेषज्ञ सहित चिकित्सा टीम द्वारा की जानी चाहिए। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत, 20 सप्ताह के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध है, जब तक कि कोर्ट इसकी अनुमति न दे। कोर्ट ऐसे मामलों में गर्भपात की अनुमति दे सकता है, जब भ्रूण में असामान्यता हो, गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो या वह यौन उत्पीड़न की शिकार हो।