Lucknow City

शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का अधिवेशन : लखनऊ में राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने की गूंजी आवाज

सिविल कोड और वंदे मातरम् पर हुई चर्चा, इमाम हुसैन और उनकी कुर्बानी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की उठी आवाज, वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा को लेकर भी किया गया मंथन

लखनऊ, 28 दिसंबर 2025:

यूपी की राजधानी लखनऊ के ऐतिहासिक बड़ा इमामबाड़ा में रविवार को ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का अधिवेशन हुआ। नेपाल, बांग्लादेश समेत देश के विभिन्न राज्यों से आए सैकड़ों प्रतिनिधियों ने इसमें शिरकत की। करीब चार घंटे चले अधिवेशन की अध्यक्षता बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैय्यद मेहंदी ने की। इस दौरान शिया मुसलमानों की मौजूदा स्थिति, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, वंदे मातरम्, वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और सिविल कोड जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई। भीड़ के मद्देनजर बड़ा इमामबाड़ा शाम 4:30 बजे तक आम पर्यटकों के लिए बंद रहा।

अधिवेशन में बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने शिक्षा नीति पर कहा कि देश में श्रीमद्भगवद्गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है तो इमाम हुसैन और उनकी कुर्बानी को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों नहीं बनाया जाता? शहादत, न्याय और मानवता के मूल्य बच्चों को पढ़ाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि शिया लॉ बोर्ड समान नागरिक संहिता (UCC) का विरोध करता है। इसे धार्मिक विविधता पर प्रहार बताया।

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उन्होंने बिहार के सीएम नीतीश कुमार के हालिया घटनाक्रम को महिलाओं का अपमान बताते हुए कहा कि वह देश की सभी महिलाओं से सार्वजनिक माफी मांगें अन्यथा बोर्ड व्यापक आंदोलन पर विचार करेगा।
अधिवेशन में आए प्रतिनिधियों ने राजनीतिक भागीदारी के अभाव पर विशेष चिंता जताई। जहीर मुस्तफा ने कहा कि 7 से 8 करोड़ की आबादी होने के बावजूद शिया समुदाय को राष्ट्रीय राजनीति में अपेक्षित पहचान नहीं मिल रही। उन्होंने कहा कि हम सामाजिक रूप से शांत रहते हैं, इसलिए राजनीतिक तौर पर हमें नजरअंदाज किया जाता है।

इसके साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि भाजपा के प्रति शिया समुदाय के झुकाव की वजह अटल बिहारी वाजपेयी, बीआर कपूर और वर्तमान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे नेताओं का सम्मानजनक रवैया रहा है। मौलाना आगा सैय्यद अब्बास रिजवी ने मंच से वंदे मातरम् का अर्थ समझाया और कहा कि देशभक्ति मजहबी नहीं इंसानी मूल्यों का विषय है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि 7 करोड़ शिया भारत में रहते हैं, लेकिन हमारे प्रतिनिधित्व की आवाज केंद्र और राज्यों में कमजोर है। यह चिंता सिर्फ हमारी नहीं, लोकतंत्र की भी है।

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अधिवेशन में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, मुंबई, नेपाल और बांग्लादेश से आए मौलानाओं ने भी हिस्सा लिया और सर्वसम्मति से समुदाय की आवाज राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने का संकल्प लिया।

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