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‘सितारे ज़मीन पर’ रिव्यू: आमिर खान ने फिर जीता दिल, हंसाया, रुलाया और सोचने पर किया मजबूर

मुंबई | 20 जून 2025
आमिर खान एक बार फिर अपने क्लासिक अंदाज में बड़े पर्दे पर लौटे हैं, इस बार फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ के जरिए। ये फिल्म न सिर्फ मनोरंजन करती है, बल्कि गहरे सामाजिक संदेश भी छोड़ती है। आमिर ने अपने उसी पुराने अंदाज को फिर से जिया है जिसमें वे ह्यूमर, इमोशन और मैसेज को एक साथ पिरो देते हैं।

कहानी एक छोटे कद के लेकिन बेहद प्रतिभाशाली फुटबॉल कोच गुलशन (आमिर खान) की है, जो अपनी कुछ गलतियों के चलते कोर्ट की सजा के रूप में न्यूरोडाइवर्जेंट बच्चों को बास्केटबॉल सिखाने का जिम्मा उठाता है। लेकिन यही सजा उसके जीवन की सबसे बड़ी सीख बन जाती है। फिल्म की कहानी फ्रांस की हिट फिल्म ‘चैंपियंस’ का भारतीय संस्करण है, जिसे निर्देशक आर एस प्रसन्ना और लेखिका दिव्या निधि शर्मा ने भारतीय संस्कृति के रंग में ढाल कर परोसा है।

सबसे खास बात यह है कि फिल्म में डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म से जूझ रहे असली कलाकारों को प्रमुख भूमिकाओं में लिया गया है। इन बच्चों की मासूमियत, सहजता और सच्चाई दर्शकों को भावुक कर देती है। ऋषभ जैन और गोपी कृष्णन वर्मा जैसे कलाकार अपनी एक्टिंग नहीं, बल्कि ज़िंदगी जीते नजर आते हैं।

आमिर खान का अभिनय एक बार फिर प्रभावशाली रहा है। वो एक ऐसे किरदार में हैं जो गलतियां करता है, गुस्सा करता है लेकिन धीरे-धीरे खुद को भी बदलता है। जेनेलिया देशमुख भी सहायक भूमिका में सशक्त नजर आती हैं।

हालांकि फिल्म का संगीत कुछ कमजोर रहा, लेकिन इसका असर कहानी की गहराई पर नहीं पड़ता। डायलॉग्स जैसे – “झगड़े में चाहे तुम जीतो या मैं, हारेगा तो हमारा रिश्ता ही” – लंबे समय तक याद रह जाते हैं।

‘सितारे ज़मीन पर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक अनुभव है जो हंसी, आंसू और एक नई सोच साथ लेकर जाता है। अगर आप दिल से सोचने वाली सिनेमा की तलाश में हैं, तो यह फिल्म मिस न करें।

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