Uttar Pradesh

सोनभद्र: चमत्कारी शीतला माता मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़, 150 वर्षों से नीम के नीचे विराजमान हैं माता

हरेन्द्र दुबे

सोनभद्र, 2 अप्रैल 2025:

शीतला माता (शीतलता माता) हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध देवी मानी जाती हैं, जिनका मंदिर रॉबर्ट्सगंज में स्थित है। यह मंदिर बहुत पुराना और श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत लोकप्रिय स्थल है। बधौली चौराहा और धर्मशाला से मात्र 500 मीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

चैत्र नवरात्रि में भव्य पूजा अर्चना

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन यहां मां कुष्मांडा की पूजा बड़े धूमधाम से की गई। भक्तजनों ने श्रद्धा और भक्ति के साथ मां के दरबार में हाजिरी लगाई। इस मंदिर के अंदर, पीछे की ओर, एक प्राचीन नीम का पेड़ स्थित है, जिसकी भी भक्त विशेष रूप से पूजा करते हैं और वहां दीया जलाते हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से इस मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र

सोनभद्र जनपद शिव और शक्ति की उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। विंध्य पर्वत पर स्थित यह जनपद मां विंध्यवासिनी, मां अष्टभुजा और मां काली के प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। शक्ति पूजा की यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। खासकर नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। आदिवासी क्षेत्र होने के कारण यहां तंत्र-मंत्र की साधना भी की जाती है, जिससे लोक कल्याण के कार्य संपन्न होते हैं।

शीतला माता मंदिर की विशेष महिमा और ऐतिहासिक महत्व

शीतला माता को महारानी देवी भी कहा जाता है। उन्हें नीम के वृक्ष का अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। चेचक और अन्य बीमारियों से बचाव के लिए भक्तजन नीम के पेड़ पर जल, फूल, माला और दीपक अर्पित करते हैं। नवरात्रि के दौरान माता को खटोला, चूड़ी, कंघी, सिंदूर और अन्य श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करने की परंपरा है।
रॉबर्ट्सगंज के मुख्य चौराहे पर स्थित मां शीतला का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। लगभग 150 वर्ष पूर्व यहां एक नीम के पेड़ के नीचे मां शीतला की मूर्ति स्थापित थी। नगर के पूर्व चेयरमैन एवं व्यापारी भोला सेठ ने मंदिर निर्माण के लिए अपनी भूमि दान में दी थी। 1973 में इस मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।

नवरात्रि अनुष्ठान और परंपराएं

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिवस पर भक्त भूमि को स्वच्छ कर ऐपन से गोलाकार चौक बनाते हैं और वहां ताम्र कलश स्थापित करते हैं। नौ दिनों तक विधिवत पूजा-अर्चना के साथ मां भगवती का आवाहन किया जाता है। अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है, जिसमें कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर भोजन कराया जाता है और उपहार स्वरूप खिलौने, फल और रुपये दिए जाते हैं।

भक्तों की आस्था का केंद्र

नवरात्रि के अवसर पर मां शीतला के इस मंदिर में भव्य आयोजन किए जाते हैं, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं। यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था, विश्वास और शक्ति का केंद्र बना हुआ है।

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