
राजकपूर: हिंदी फिल्मों का पहला और अमर शोमैन
कोमल शर्मा
18 दिसंबर 1970 को रिलीज़ हुई थी शोमैन राजकपूर की ड्रीम प्रोजेक्ट फिल्म “मेरा नाम जोकर”। आर के बैनर तले उस समय एक करोड़ से भी ज्यादा के बजट में 6 साल के लम्बे वक्त में बनी इस फिल्म के लिए राजकपूर को अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा था। ” लम्बी अवधि, न्यूडिटी और दुखद क्लाईमैक्स के कारण ‘मेरा नाम जोकर’ बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई। राजकपूर बरबादी की कगार पर आ गए। लेकिन फिल्म ने सोवियत यूनियन में 16 करोड़ का बिजनेस किया। किसी वक्त बिग फ्लॉप साबित हुई फिल्म आज कल्ट क्लासिक फिल्मों की श्रेणी में आती है।
14 दिसंबर 1924 में पेशावर पाकिस्तान में जन्मे राजकपूर के अन्दर यूं तो खून एक कलाकार का ही था ल लेकिन फेमस एक्टर पृथ्वीराज कपूर के बेटे होने के बावजूद भी उन्होंने बॉम्बे टॉकिज में क्लैपर के काम से शुरूआत की।
दस साल की उम्र में 1935 में फिल्म “इंकलाब” से अपने फिल्मी करियर की शुरूआत करने वाले राजकपूर ने 1947 में फिल्म नील कमल में पहला लीड रोल किया, जो बड़ी हिट साबित हुई। 24 साल की उम्र में राजकपूर ने अपना प्रोडेक्शन हाउस आर के स्टूडियों शुरू किया जिसके बैनर तले आग , आवारा, श्री 420, संगम जैसी फिल्में डायरेक्ट की। फिल्म “संगम” में उन्होने खुद भी अभिनय किया। उसमें उनकी विवादस्पद, रोमांटिक, बोल्ड छवि का मिश्रण था। 1948 में राजकपूर ने अभिनेता-निर्माता-निर्देशक के तौर पर फिल्म “आग” बनाई। फिर नरगिस के साथ इन्ही तीनों भूमिकाओं में “बरसात” बनाई। यह फिल्म सुपर हिट साबित हुई। लोगों की जुबान पर गायक मुकेश और लता मंगेशकर के गाए फिल्म “बरसात” के गाने सुनाई देने लगे। इसके बाद राजकपूर इतने उत्साहित हुए कि अगले साल 150 में एक नही दो नही पूरी छह फिल्मों में बतौर हीरो नज़र आए। “सरगम”, “दास्तान”, ”बावरे नैन’, ”जानपहचान”और ”प्यार” ये फिल्में इसी दौरान की थी।
वर्ष 1951 में रिलीज़ हुई फिल्म “आवारा” ने राजकपूर को ना सिर्फ नायक बल्कि फिल्मकार के रूप में भी एक अलग मुकाम पर पहचान बनाई। मात्र 27 साल में इतनी सफलता, यह प्यार, यह जुनून था इस शोमैन का फिल्मों के लिए। मास्को की सड़कों पर आवारा के गीत सुनाई देने लगे। राजकपूर की लोकप्रियता का ये एक विशाल दायरा था। राजकपूर की लोकप्रियता की इस किताब में “बूट पॉलिश”, “श्री420”, “चोरी चोरी”,”जागते रहो”, “अनाड़ी”, “छलिया” और “जिस देश में गंगा बहती है” जैसी लोकप्रिय फिल्में थी तो कई फ्लॉप फिल्में भी शामिल हैं। लेकिन नाकामयाबी को दरकिनार कर आगे बढ़ना ही शोमैन का जुनून रहा।
राजकपूर अपनी फिल्मों की नायकाओं को लेकर भी बड़े संजीदा थे। 1951 से 1956 तक की राजकपूर की फिल्मों की नायिका नरगिस रहीं। म्यूजिक, अभिनय, पटकथा का चयन या फिर स्क्रीनप्ले राजकपूर की फिल्में इन सभी एंगल से बेहतरीन होती थी। ये ही कारण है कि उन्हे शोमैन कहा जाने लगा।
हालांकि फिल्मों में उस वक्त खुलकर नायिकाओं को ‘सिडक्टिव’ तरीके से दिखाने का चलन नही था, लेकिन राजकपूर की फिल्मों की नायिकाएं स्वछंद तरीके से दिखाई देती। खासबात ये थी कि उनकी नायिकाओं का ये अंगप्रदर्शन अश्लील ना लगकर मैनस्ट्रीम सिनेमा का कल्ट बन गया। “मेरा नाम जोकर” की एक्ट्रेस का ट्रांसपेरेंट साड़ी में फिल्माया गीत या फिर “सत्यम शिवम सुंदरम” में जीनत अमान और “राम तेरी गंगा मैली” में मंदाकिनी का अंगप्रदर्शन इस तरह शूट किया जाता कि वो हिन्दी सिनेमा में कल्ट बन गया। ये सीन होने के बावजूद सैंसरशिप से ये फिल्में बिना ज्यादा काटछाट के पास भी हो जाती थी।
हिन्दी फिल्मों को आकार देने में जिन महान फिल्मकारों का नाम है उनमें राजकपूर का नाम भी शामिल है। अपनी फिल्मो के जरिए उन्होने फिल्म इंडस्ट्री को एक नई दिशा दी। ये ही कारण है कि लीजेंडरी राजकपूर की 100वीं जयंती पर उनकी फिल्मों और उनको याद किया जा रहा है।







