
नई दिल्ली, 30 मई 2025:
देश के पहले हिंदी अखबार उदंत मार्तंड के प्रकाशन को आज 200 साल पूरे हो गए हैं। 30 मई 1826 को कोलकाता से प्रकाशित इस साप्ताहिक पत्र के संपादक कानपुर के पंडित जुगुल किशोर शुक्ल थे। हालांकि इसका प्रकाशन अल्पकालिक रहा और 11 दिसंबर 1827 को इसका अंतिम अंक छपा। वर्ष 1976 में इसके 150 वर्ष पूर्ण होने पर लखनऊ में एक पत्रकार सम्मेलन आयोजित किया गया, जहां यह निर्णय लिया गया कि 30 मई को हर साल पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस वर्ष पत्रकारिता दिवस की 50वीं वर्षगांठ भी है।
बीते दो सौ वर्षों में पत्रकारिता का स्वरूप ही नहीं, उसका उद्देश्य और प्रभाव भी गहराई से बदला है। पहले जहां प्रिंट मीडिया सूचनाओं का एकमात्र माध्यम था, वहीं आज इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और सोशल मीडिया ने सूचना संप्रेषण की दिशा ही बदल दी है। सोशल मीडिया ने खबरों और विचारों को अभिव्यक्ति का मुक्त मंच दिया है, पर यह मंच कभी-कभी अराजकता का रूप भी ले लेता है।
संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का कोई अलग उल्लेख नहीं है, लेकिन अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित है। यह स्वतंत्रता भी सीमित है, जिसका उल्लंघन विशेष रूप से आपातकाल (1975-77) के दौरान देखा गया।
आज पत्रकारिता सत्ता और पूंजी के दोहरे दबाव में है। खबरें अब ‘प्रोडक्ट’ बन चुकी हैं और उनका मूल्य सत्य नहीं, लाभ तय करता है। नतीजतन, भरोसे की नींव कमजोर हुई है। वहीं, सोशल मीडिया ने आम पाठकों और दर्शकों को प्रतिरोध का हथियार भी सौंपा है।
इसके बावजूद कई पत्रकार आज भी सच्ची, साहसी और निष्पक्ष पत्रकारिता की मशाल थामे खड़े हैं। पत्रकारिता दिवस आज केवल इतिहास का स्मरण नहीं, बल्कि आत्ममंथन और जिम्मेदारी का अवसर भी है — जो पत्रकारों को नई शक्ति और निष्ठा के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।