नई दिल्ली, 20 जुलाई 2025
दुष्कर्म के एक मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्प्णी करी है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि कथित हमले के बारे में लड़की के “स्पष्ट बयान” को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट में उसे लगी चोटों का जिक्र नहीं है। उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति और उसकी पत्नी के खिलाफ 2016 में दर्ज एक मामले में नए आरोप तय करने और सुनवाई करने का निर्देश ट्रायल कोर्ट को दिया है। यह मामला कथित तौर पर एक लड़की पर हमला करने और उसे अवैध रूप से हिरासत में रखने के आरोप में दर्ज किया गया था। बता दे कि इस केस में न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की।
पीड़ित लड़की आरोपी की कंपनी में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करती थी। निचली अदालत ने उस व्यक्ति पर बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था। हालाँकि, उसने उस व्यक्ति और उसकी पत्नी को मारपीट और अवैध रूप से बंधक बनाने के आरोपों से बरी कर दिया था।
लड़की ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। सुनवाई के दौरान पीठ ने 18 जुलाई को जारी अपने आदेश में कहा कि “हालांकि मेडिकल जांच रिपोर्ट में लड़की को किसी भी तरह की चोट का जिक्र नहीं है, लेकिन पिटाई किए जाने के उसके बयान को खारिज नहीं किया जा सकता।”
लड़की ने मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराया। पीठ ने कहा, “मुझे पेट में लात मारी गई और मेरा सिर दीवार पर पटक दिया गया। हालाँकि, लड़की ने कहा है कि मेडिकल रिपोर्ट में इसका कोई ज़िक्र नहीं है।”