संजय भटनागर
क्रिकेट जगत में लंबे समय तक अपनी चौधराहट कायम रखने वाली वेस्टइंडीज और किसी हद तक इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की टीमें 1990 और 2000 के दशकों में संक्रमण काल से गुजरीं। कारण था, उनके अनेक दिग्गज खिलाड़ी लगभग एक साथ रिटायर हुए। वेस्टइंडीज आज भी अपना खोया मुकाम नहीं पा सकी और ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड भी उस स्तर तक नहीं पहुंच पायीं। ऐसा किसी भी टीम के साथ हो सकता है, खासतौर से टेस्ट क्रिकेट में।
भारत के साथ भी एक समय आया था जब सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, लक्ष्मण, अनिल कुंबले जैसे खिलाड़ी आगे पीछे लगभग एक साथ रिटायर हुए थे। क्रिकेट प्रेमियों के मन में भी उस समय शंका थी कि इतने बड़े-बड़े खिलाड़ियों की जगह कौन लेगा और भारतीय टीम ने 1990 के दशक से 2000 के दशक तक जो धाक जमाई थी, वो कभी वापस नही आ पाएगी लेकिन हुआ इसका उलट और धोनी की अगुआई में टीम ने नए खिलाड़ियों के साथ विश्व क्रिकेट में शीर्ष स्थान बनाया। यह वह समय था जब विराट कोहली, रोहित शर्मा, गौतम गंभीर, शिखर धवन, अश्विन, समी जैसे खिलाड़ियों का उद्भव हुआ।
आज फिर वही स्थिति है, जब विराट और रोहित की टेस्ट क्रिकेट से विदाई के बाद टीम में वरिष्ठ एवं अनुभवी खिलाड़ियों की एकदम से कमी नजर आ रही है। लेकिन इस परिस्थिति में भी क्रिकेट प्रेमियों के मन में किसी चिंता की आवश्यकता नही है क्योंकि भारत के मजबूत घरेलू क्रिकेट तंत्र और जूनियर क्रिकेट पर खास तवज्जो दिए जाने के कारण प्रतिभा की बहुतायत हो गई है।
सच तो यह है कि भारतीय टीम का नया कप्तान शुभमन गिल ही युवा नही है बल्कि टीम में भी युवा खिलाड़ियों की भरमार है। भारतीय पुरुष क्रिकेट में प्रतिभा का अतिरेक ही है कि इस समय 11 खिलाड़ियों के हर स्थान के लिए दो तीन खिलाड़ियों के सक्षम विकल्प मौजूद व मजबूत हैं। हाल ही में इंग्लैंड सीरीज की लिए भारतीय टीम की घोषणा की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में चयनकर्ताओं ने सरफराज खान को टीम में चुने न जाने पर टिप्पणी भी की कि हम 50 खिलाड़ी नहीं चुन सकते हैं। ठीक बात है, जिस टेस्ट टीम में सरफराज और श्रेयस अय्यर जैसे खिलाड़ी प्रदर्शन के बाद भी जगह नहीं पा सकते हों, वहां अंदाजा लगाया जा सकता है कि खिलाड़ियों का ‘पूल’ कितना विस्तृत होगा। यह बात सिर्फ टेस्ट क्रिकेट की है, बाकी फॉर्मेट की तो बात ही अलग है।
राहुल द्रविड़ ने तैयार की क्रिकेट की नर्सरी
वर्ष 2011 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद राहुल द्रविड़ ने 2014 में भारतीय जूनियर क्रिकेट यानी अंडर-19 क्रिकेट टीम का कोच और साथ ही बेंगुलुरू में नेशनल क्रिकेट अकादमी का अध्यक्ष बनना स्वीकार किया। वह इंडिया A टीम के साथ भी जुड़े। यहां से शुरू हुआ था भारतीय क्रिकेट का एक और सुनहरा अध्याय। यही वो समय था जब ऋषभ पंत, गिल, कुलदीप यादव, अभिषेक शर्मा, अर्शदीप सिंह, रियान पराग, पृथ्वी शॉ, हार्दिक पांड्या और रणजी ट्रॉफी में नाम कमा रहे तमाम खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा को पंख दिए।
आज यह कहा जा सकता है कि भारतीय क्रिकेट को शायद ही सीनियर खिलाड़ियों की कमी खले क्योंकि यहां प्रतिभा का अतिरेक है।
इस आईपीएल में भी युवाओं के प्रदर्शन से यही संकेत मिल रहे हैं। देखिए , सचिन के स्थान पर विराट, गांगुली के स्थान पर धोनी, ज़हीर का विकल्प बुमराह और हरभजन का स्थानापन्न कुलदीप और जडेजा मिले थे ही। ऐसा ही अब होने वाला है। अब भारतीय क्रिकेट का एक और स्वर्णिम काल शुरू होने वाला है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )