
नई दिल्ली, 8 जुलाई 2025
भारत में 1970 से 2010 के बीच बाढ़ की तीव्रता में बीते 100 वर्षों की तुलना में गिरावट देखी गई है। यह खुलासा देशभर में जल प्रवाह मापन गेजों से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित एक अध्ययन में हुआ है, जो पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ है। हालांकि, अध्ययन में यह भी चेतावनी दी गई है कि पश्चिमी हिमालय और मालाबार जैसे क्षेत्रों में मानसून पूर्व और शुरुआत के समय बाढ़ की घटनाएं बढ़ रही हैं।
IIT दिल्ली और IIT रुड़की के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस शोध के अनुसार, गंगा और सिंधु नदी घाटियों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अचानक बाढ़ की घटनाएं अब मानसून की शुरुआत में ही दिखाई देने लगी हैं। इन बदलावों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा गया है, जिससे बारिश और बर्फ के संक्रमण क्षेत्रों में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।
इस बदलाव के संभावित प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि वर्तमान बाढ़ प्रबंधन प्रणाली को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है। विशेष रूप से मालाबार तट पर चलियार, पेरियार और वामनपुरम जैसी नदियों में मानसून पूर्व बाढ़ की घटनाएं बढ़ती दिख रही हैं, जिससे कृषि और जनजीवन प्रभावित हो सकता है।
173 गेजिंग स्टेशनों में से 74% स्टेशनों पर बाढ़ की तीव्रता में कमी देखी गई है, जबकि केवल 26% स्टेशनों ने वृद्धि दर्ज की है। गंगा बेसिन में प्रति दशक 17% की कमी दर्ज हुई, वहीं पश्चिम और मध्य गंगा क्षेत्रों में 100 वर्षीय बाढ़ प्रवाह में आधे से अधिक की गिरावट आई है।
दक्कन पठार के मराठवाड़ा क्षेत्र में नदियों के प्रवाह में मानसून और प्री-मानसून सीजन में क्रमशः 8% और 31% की गिरावट देखी गई है। शोध से यह भी स्पष्ट होता है कि बड़े जलाशयों और बांधों ने बाढ़ की तीव्रता को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हालांकि 2010 के बाद से बाढ़ और बारिश का पैटर्न और भी अनियमित हुआ है, जिससे भविष्य के लिए तैयार रहना आवश्यक हो गया है।