नई दिल्ली, 15 मई 2025 —
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था। ऐसे में तुर्की और अजरबैजान ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया। खासतौर पर तुर्की ने पाकिस्तान को सैन्य साजो-सामान भेजकर यह स्पष्ट कर दिया कि वह पाकिस्तान के साथ खड़ा है। लेकिन सवाल यह है कि तुर्की ने ऐसा क्यों किया? क्या यह सिर्फ दोस्ती का मामला है? असल में तुर्की की इस मदद के पीछे एक बड़ा रणनीतिक उद्देश्य है।
तुर्की ने बीते कुछ वर्षों में अपनी रक्षा तकनीक और हथियार निर्माण क्षमताओं को काफी मजबूत किया है। अब वह दुनिया के सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में शामिल होना चाहता है। पाकिस्तान, जिसकी सेना हथियारों के लिए बाहरी देशों पर निर्भर है, तुर्की के लिए एक आदर्श ग्राहक बन गया है। दोनों देशों के बीच मिलगेम युद्धपोत, टी-129 अटैक हेलीकॉप्टर और ड्रोन जैसे अरबों डॉलर के रक्षा सौदे हुए हैं।
यह समर्थन सिर्फ दोस्ती नहीं बल्कि एक रणनीतिक निवेश है। तुर्की, पाकिस्तान जैसे देशों को सहायता देकर अपने हथियारों का बाजार बढ़ा रहा है। इससे तुर्की की रक्षा कंपनियों को नए अनुबंध और व्यापार के अवसर मिलते हैं। मिडल ईस्ट, अफ्रीका और एशिया में तुर्की का रक्षा बाजार तेजी से फैल रहा है।
इस रणनीति का असर दिखने भी लगा है। तुर्की अब दुनिया का 11वां सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बन चुका है। 2019 से 2023 के बीच उसके निर्यात में 106% की वृद्धि हुई है। तुर्की ने संयुक्त अरब अमीरात को सबसे अधिक 15%, कतर को 13% और पाकिस्तान को 11% हथियार निर्यात किए हैं।
यानी, तुर्की का पाकिस्तान को समर्थन केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामरिक हितों से प्रेरित है। उसका असली मकसद है – वैश्विक हथियार बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनना।