
अंशुल मौर्य
वाराणसी, 20 नवंबर 2024:
उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लल्लापुरा क्षेत्र के कारीगरों ने एक बार फिर अपने हुनर का लोहा मनवाया है। ब्रिटेन में महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद किंग क्राउन बैज के लिए हुए ऑर्डर ने वाराणसी के जरदोजी कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई है। इन बैजों को ब्रिटिश आर्मी और रॉयल फैमिली के लिए तैयार किया जा रहा है। अब तक 5,000 से अधिक बैज ब्रिटेन एक्सपोर्ट किए जा चुके हैं।
लल्लापुरा के मुमताज आलम और उनके परिवार की कारीगरी तीन पीढ़ियों से दुनिया भर की सेनाओं के लिए पहचान चिह्न तैयार कर रही है। महारानी एलिजाबेथ के निधन के बाद ब्रिटेन के नए किंग क्राउन डिज़ाइन वाले बैज बनाने का ऑर्डर उन्हें मिला। मुमताज आलम ने बताया कि बैज बनाने का काम पूरी तरह हाथों से होता है और इसके लिए सोने-चांदी के तारों के साथ बारीक कढ़ाई की जाती है।
जरदोजी की परंपरा और उसकी चुनौतियां
जरदोजी, जो मुगलकालीन समय से प्रसिद्ध है, आज भी अपनी विशिष्टता बनाए हुए है। शादाब आलम, मुमताज के बेटे, ने बताया कि एक बैज बनाने में चार से पांच दिन लगते हैं, जबकि बड़े सरकारी चिह्नों को बनाने में महीनों लग सकते हैं। हालांकि, उन्होंने सरकार की अनदेखी पर भी चिंता जताई और जीआई टैग मिलने की मांग की, जिससे उनकी कला को संरक्षित किया जा सके और नई ऊंचाइयां मिल सकें।
प्रधानमंत्री से उम्मीदें
जरदोजी कारीगरों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीदें हैं। उनका मानना है कि यदि सरकार उनका समर्थन करे, तो न केवल उनकी कला को बढ़ावा मिलेगा बल्कि नई पीढ़ी भी इस परंपरा को आगे ले जाने के लिए प्रेरित होगी।
मोदी सरकार के प्रयास
मुमताज आलम ने बताया कि मोदी सरकार की नीतियों से उनके कारोबार को बढ़ावा मिला है। पहले जहां तीन महीने का काम ठप रहता था, वहीं अब पूरे साल काम मिल रहा है। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है बल्कि जरदोजी की कला को भी नई पहचान मिल रही है।
वाराणसी के जरदोजी कारीगरों का यह हुनर भारतीय परंपरा और कला को वैश्विक मंच पर सम्मान दिलाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।






