
नई दिल्ली, 30 मई 2025
राज्य में हो रही अवैध खनन के चलते सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को जमकर फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा हरियाणा सरकार को खनन माफिया और उसके दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है। बता दे कि इन अधिकारियों पर वन कानूनों का उल्लंघन करने और नूंह में अरावली से निकाले गए पत्थरों को राजस्थान में अवैध रूप से ले जाने का आरोप है।
विज्ञापनमुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले में हरियाणा के मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामे की कड़ी आलोचना की।पीठ, अरावली की संरक्षित वन भूमि पर खनन माफिया द्वारा “राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ मिलीभगत” से नूह में अरावली से निकाले गए पत्थरों को राजस्थान तक अवैध परिवहन में मदद करने के लिए 1.5 किलोमीटर लंबी अनाधिकृत सड़क के निर्माण से संबंधित याचिका पर विचार कर रही थी।इस आशय की एक रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा प्रस्तुत की गई।मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “(मुख्य सचिव के) हलफनामे के अवलोकन से यह पता नहीं चलता कि दोषी अधिकारियों और खनन माफिया के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है, जो बेईमानी से पहाड़ियों को नष्ट कर रहे हैं।”पीठ ने कहा कि मुख्य सचिव वन विभाग के अधिकारियों और आरोपियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को स्पष्ट न करके उन पर दोष मढ़ रहे हैं।प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मुख्य सचिव सरकार के कामकाज के लिए जिम्मेदार हैं और वह अपने कार्यों का चयन नहीं कर सकते।प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि माफिया इतना मजबूत है कि वह न केवल अपने सदस्यों को बल्कि उनके साथ मिलीभगत करने वाले राज्य सरकार के अधिकारियों को भी बचाने में सक्षम है।”पीठ ने कहा, “हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि मुख्य सचिव और नूंह के डिप्टी कलेक्टर ने पारिस्थितिकी और पर्यावरण से संबंधित मामलों में लापरवाही बरती है।”पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर सीईसी की रिपोर्ट पर गौर करते हुए पीठ द्वारा आदेश पारित किये जाने के बाद कुछ कार्रवाई की गयी है।पीठ ने कहा, “हम मुख्य सचिव को सभी दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और 16 जुलाई तक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं।” साथ ही कहा कि सरकार की ओर से किसी भी तरह की ढिलाई पर कानून के तहत दंडात्मक आदेश दिए जाएंगे।यह भी पढ़ें:सुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीश नियुक्तअब इस मामले की सुनवाई 16 जुलाई को होगी।15 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी गई सीईसी रिपोर्ट में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1900 के गंभीर उल्लंघनों को चिन्हित किया गया है, तथा पर्यावरण क्षरण, वन्यजीव आवास के विनाश और प्रशासनिक निष्क्रियता का हवाला दिया गया है।रिपोर्ट के अनुसार, इस सड़क का निर्माण कानूनी मंजूरी के बिना भारी मशीनरी का उपयोग करके किया गया तथा यह अधिसूचित वन एवं कृषि भूमि को चीर कर बनाई गई।रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्माण कार्य अक्टूबर 2024 में शुरू होकर अप्रैल 2025 में समाप्त होगा, जिससे दशकों पुराने अरावली वृक्षारोपण और वन्यजीव गलियारे बाधित होंगे, विशेष रूप से वे जो तेंदुओं की आवाजाही के लिए महत्वपूर्ण हैं।समिति ने वरिष्ठ राजस्व अधिकारियों के “असहयोगी रवैये” पर भी गौर किया, जिनमें से कुछ ने कथित तौर पर इस मुद्दे पर हुई कई बैठकों में भाग नहीं लिया।रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें स्थानीय “राजनीतिक व्यक्तियों” और खनन माफियाओं के साथ संभावित मिलीभगत का भी संकेत दिया गया है।यह मामला पिछले वर्ष नवंबर में बसई मेव गांव के निवासियों द्वारा दायर याचिका से उत्पन्न हुआ है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वन और कृषि भूमि के माध्यम से अवैध रूप से बनाई गई सड़क, नूह में अरावली से खनन किए गए पत्थरों को सीमावर्ती गांव बीवान के माध्यम से राजस्थान तक ले जाने में सहायक हो रही है।






