
कोलकाता, 15 जून 2025:
पश्चिम बंगाल की राजनीति में 21 जुलाई एक बेहद भावनात्मक और रणनीतिक रूप से अहम तारीख है। यह वही दिन है जब साल 1993 में एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में युवा कांग्रेस के 13 कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी। उस घटना का नेतृत्व तत्कालीन युवा कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने किया था। यह घटना न केवल राज्य की राजनीति में बदलाव का कारण बनी, बल्कि ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर की दिशा भी बदल गई।
ममता बनर्जी को उस दिन प्रदर्शन के दौरान चोटें भी आईं थीं। इसके कुछ वर्षों बाद उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर 1998 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और फिर 2011 में राज्य की सत्ता पर काबिज हुईं। सत्ता में आने के बाद उन्होंने हर साल 21 जुलाई को शहीद दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की, जिसे अब पार्टी बड़े स्तर पर आयोजित करती है।
इस साल यह दिन खास इसलिए भी है क्योंकि यह रैली 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पड़ रही है। टीएमसी के लिए यह चुनावी मूड सेट करने का मौका भी है। पार्टी ने तय किया है कि इस बार के शहीद दिवस से जुड़े सभी आधिकारिक पोस्टरों पर सिर्फ ममता बनर्जी की तस्वीर होगी। पार्टी महासचिव और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने खुद कहा कि चूंकि वे 1993 के आंदोलन का हिस्सा नहीं थे, इसलिए उनकी तस्वीर नहीं लगाई जानी चाहिए।
इस निर्णय को पार्टी के भीतर एकजुटता बनाए रखने और विरोधियों को मुद्दा न देने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। यहां तक कि 21 जुलाई को जब संसद का मानसून सत्र शुरू होगा, तब भी टीएमसी के सांसद दिल्ली में नहीं रहेंगे और कोलकाता की रैली में शामिल होंगे।
यह शहीद दिवस अब एक राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन बन चुका है, जिससे टीएमसी अपने जनाधार को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है।