
दमिश्क, सीरिया | 3 जुलाई 2025
मुहर्रम का महीना इस्लामी इतिहास में कुर्बानी और हक की लड़ाई की मिसाल है. इसी महीने में कर्बला की वह दर्दनाक जंग हुई थी, जिसने इस्लाम के असली उसूलों को बचाने की कहानी लिखी. इस लड़ाई में जहां पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन ने यजीद जैसे जालिम खलीफा के खिलाफ अपनी जान कुर्बान की, वहीं उनकी बहन हजरत जैनब ने एक ऐसे किरदार को अदा किया जिसने पूरी दुनिया को कर्बला की सच्चाई से रूबरू कराया.
कर्बला की इस जंग में 10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ईस्वी) को इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया. लेकिन इस दर्दनाक त्रासदी के बाद भी हजरत जैनब ने खुद को टूटने नहीं दिया. उन्होंने इस्लाम की महिलाओं की ताकत और हिम्मत की एक मिसाल पेश की.
हजरत जैनब ने उस वक्त बहादुरी दिखाई जब यजीद की फौज ने बच्चों और महिलाओं तक को बख्शा नहीं. उनके सामने इमाम हुसैन का छह महीने का बच्चा भी प्यास से तड़पकर शहीद कर दिया गया. जंजीरों में जकड़ी हजरत जैनब को कर्बला से कूफा और फिर दमिश्क तक घुमाया गया, लेकिन उन्होंने हर रास्ते में, हर चौक में लोगों को कर्बला का सच सुनाया.
सबसे बड़ा क्षण तब आया जब यजीद के दरबार में उन्हें पेश किया गया. वहां उन्होंने बिना किसी डर के यजीद के सामने खड़े होकर जो खुतबा दिया, उसने पूरी महफिल को झकझोर दिया. उन्होंने कहा—”तू चाहे जितना मक्कारी कर ले, लेकिन हमारे जिक्र को मिटा नहीं सकता. अल्लाह का रास्ता और कुरान हमेशा जिंदा रहेंगे.”
हजरत जैनब की इसी हिम्मत और बुलंद आवाज ने यजीद की सत्ता की नींव को हिलाकर रख दिया. उन्होंने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि इस्लाम की महिलाएं न केवल पर्दे के पीछे रहकर बल्कि सामने आकर भी अन्याय के खिलाफ खड़ी हो सकती हैं. इसीलिए उन्हें ‘कर्बला की रानी’ कहा जाता है.