
नई दिल्ली, 15 जुलाई 2025 –
यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को फांसी दी जानी है, जिससे देशभर में फांसी की सजा को लेकर बहस फिर छिड़ गई है। इसी बीच 70 साल पुरानी एक ऐसी घटना फिर चर्चा में आ गई है जब भारत में पहली और अब तक की इकलौती महिला को फांसी दी गई थी। उस महिला का नाम था रतन बाई जैन, जिसे 3 जनवरी 1955 को तीन लड़कियों की हत्या के मामले में फांसी दी गई थी।
रतन बाई दिल्ली की रहने वाली थीं और एक स्टेरिलिटी क्लिनिक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थीं। उन्हें शक था कि उनके पति का तीन युवतियों से संबंध है। इसी शक के चलते रतन ने उन लड़कियों को जहर देकर मार डाला। जांच में साबित हुआ कि रतन ने खाने या पेय में जहर मिलाकर तीनों की हत्या की थी। यह मामला इतना संगीन था कि अदालत ने उन्हें सीधे फांसी की सजा सुनाई।
3 जनवरी 1955 को तिहाड़ जेल में उन्हें फांसी पर लटकाया गया। इसके बाद आज तक भारत में किसी महिला को फांसी नहीं दी गई, हालांकि कई महिलाओं को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है। उदाहरण के तौर पर, सीमा गावित और रेणुका शिंदे को बच्चों के अपहरण और हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन 2022 में उनकी सजा उम्रकैद में बदल दी गई।
उत्तर प्रदेश के अमरोहा में शबनम नाम की महिला को भी अपने प्रेमी सलीम के साथ 7 परिजनों की हत्या के मामले में मौत की सजा मिली, जो अब भी लागू है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी फांसी की सजा बरकरार रखी है, लेकिन अब तक अमल नहीं हुआ है।
भारत में मृत्युदंड पर लंबे समय से बहस चलती रही है। सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि जीवन के अधिकार से संबंधित मामलों में अत्यंत सतर्कता की जरूरत है। इसी कारण मृत्युदंड पाने वालों को पुनर्विचार याचिका का विशेषाधिकार दिया गया है, ताकि न्याय की अंतिम संभावना सुनिश्चित हो सके।