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पीएम मोदी ने चोल साम्राज्य को यूं ही नहीं दी अहमियत, इतिहासकार बोले- अब इतिहास पर दोबारा सोचने का समय

गंगईकोंडा चोलपुरम (तमिलनाडु), 28 जुलाई 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को तमिलनाडु के ऐतिहासिक गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की 1000वीं जयंती समारोह में भाग लिया। इस मौके पर उन्होंने मंदिर में पूजा अर्चना की और चोल साम्राज्य की सांस्कृतिक, कूटनीतिक और सैन्य विरासत को भारत की शक्ति और एकता का प्रतीक बताया।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि चोल वंश ने श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपने व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों का विस्तार किया। उन्होंने चोल राजाओं के नौसैनिक सामर्थ्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि राजराजा चोल और उनके पुत्र राजेंद्र चोल प्रथम ने भारत की समुद्री ताकत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने यह भी बताया कि काशी-तमिल संगमम् और सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसे आयोजन उसी सांस्कृतिक एकता को सशक्त करने की पहल हैं।

सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने इस मौके पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के इतिहास की समझ अभी तक दिल्ली-केंद्रित रही है, जबकि दक्षिण भारत के शक्तिशाली साम्राज्य, विशेष रूप से चोल, पांड्य, चेर और पल्लव जैसे राजवंशों को उतनी मान्यता नहीं मिली जितनी उन्हें मिलनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज केवल मंदिरों के निर्माता नहीं थे, वे ऊर्जावान, नवाचारी और सैन्य दृष्टि से भी सक्षम थे।

सान्याल ने यह भी जोड़ा कि भारत के पश्चिमी तट का इतिहास भी अद्भुत है, जहाँ रोमन साम्राज्य तक से व्यापारिक संबंध रहे। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि अब भारत अपने बहुआयामी ऐतिहासिक परंपरा की ओर लौट रहा है।

इतिहासकारों और विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चोल साम्राज्य को केंद्र में लाने का यह प्रयास भारतीय इतिहास की बहुपक्षीयता को सामने लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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