
दिल्ली, 31 जुलाई 2025
भारत में मुगल शासन की चर्चा जब भी होती है, तो उनके शाही ऐशोआराम, विलासिता और महंगे शौकों का जिक्र जरूर आता है। मुगलों की असली रईसी की शुरुआत अकबर के शासनकाल से हुई, जब उन्होंने न केवल साम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि व्यापार को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इसी दौर में मुगलों ने विदेशों से विभिन्न वस्तुएं मंगवाने की परंपरा शुरू की, जो आगे चलकर मुगल संस्कृति का हिस्सा बन गई।
इतिहासकारों के अनुसार, बाबर और जहांगीर जैसे बादशाह शराब के बेहद शौकीन थे। इनकी यह जरूरत मुख्य रूप से ईरान (फारस) और मध्य एशिया के देशों से पूरी होती थी। अफीम और तंबाकू जैसी नशीली चीजों का भी वही स्रोत था। चीन से मुगलों को रेशमी कपड़े और चाय आती थी, जबकि यूरोप से कीमती और उम्दा गुणवत्ता वाले वस्त्र मंगवाए जाते थे।
फलों और मेवों की बात करें तो ईरान और अफगानिस्तान इस ज़रूरत को पूरा करते थे। खासकर मेवे जैसे बादाम, पिस्ता, अखरोट आदि का बड़े पैमाने पर आयात होता था। इसके अलावा शाही टेबल पर विदेशी फलों की मौजूदगी भी आम थी।
घोड़ों के मामले में मुगलों की पहली पसंद अफगानिस्तान का काबुल था, जहां से युद्धों और परेड के लिए शक्तिशाली नस्लों के घोड़े मंगवाए जाते थे। इसके अलावा बहरीन, मस्कट और अदन से भी उच्च गुणवत्ता के घोड़े आयात किए जाते थे।
सेना के लिए हथियारों की खरीद भी यूरोपीय देशों से होती थी। मुगलों ने समुद्री मार्गों का उपयोग करते हुए चीन और दक्षिण एशियाई देशों से चीनी मिट्टी के बर्तन, कपूर, मोम और चंदन जैसी चीजें भी मंगाई थीं।
हालांकि आयात के साथ-साथ भारत से भी कई वस्तुओं का निर्यात होता था, जिनमें मसाले, इत्र, रत्न, हथकरघा वस्त्र, नील, सोना-चांदी और हाथी दांत के सामान शामिल थे। मुगल शासनकाल में भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा केंद्र बन चुका था।






