अंशुल मौर्य
वाराणसी, 8 सितंबर 2025:
यूपी की शिवनगरी काशी में विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला एक बार फिर अपनी शानदार परंपरा के साथ शुरू हो चुकी है। रामलीला के साथ-साथ, विजया दशमी के लिए बरेका के केंद्रीय खेल मैदान में रावण दहन की तैयारियां भी जोरों पर हैं। इस बार रावण का पुतला 70 फीट, कुम्भकर्ण का 65 फीट और मेघनाद का 60 फीट ऊंचा बनाया जा रहा है। शमशाद और उनका कुनबा इन पुतलों को आकार देने में लगा है।
मंदिरों, घाटों और प्राचीन गलियों को समेटे वाराणसी हर साल रामलीला के माध्यम से भगवान राम के आदर्शों को जीवंत करती है। लगभग 500 साल पहले तुलसीदास के गुरुभाई मेघाभगत ने लाटभैरव मुहल्ले से इस पवित्र परंपरा की नींव रखी थी, जो आज भी काशी की सांस्कृतिक धरोहर का गौरव बढ़ा रही है। शनिवार से शुरू हुई रामलीला के साथ-साथ, विजया दशमी के लिए बरेका के केंद्रीय खेल मैदान में रावण दहन की तैयारियां भी जोरों पर हैं। इस बार रावण का पुतला 70 फीट, कुम्भकर्ण का 65 फीट और मेघनाद का 60 फीट ऊंचा बनाया जा रहा है। मंडुवाडीह के शमशाद और उनका परिवार दशकों से अपने कुशल हाथों से ये विशाल पुतले तैयार करते हैं, जो काशी के दशहरा उत्सव का मुख्य आकर्षण होते हैं।
शमशाद बताते हैं कि इन पुतलों को बनाने में 200 किलो मैदा, 150 बांस, 200 किलो कागज, डेढ़ कुंतल तांत, 150 साड़ियां, 50 किलो पेंट और एक किलो तूतिया का इस्तेमाल होगा। खास बात यह है कि प्रत्येक पुतले में करीब 200 पटाखे लगाए जाएंगे, जो दहन के समय आसमान को रोशनी और उत्साह से भर देंगे। समिति के रूपक निदेशक एस.डी. सिंह का कहना है कि इस बार भी पुतलों को और आकर्षक बनाने के लिए विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
इन विशाल पुतलों को तैयार करने में 10 कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। निर्माण कार्य में दो महीने का समय लगेगा, और यह प्रक्रिया शमशाद के परिवार के लिए किसी उत्सव से कम नहीं। बांस की संरचना से लेकर कागज चिपकाने और रंगाई-पुताई तक, हर काम में परिवार का हर सदस्य जी-जान से जुटा है। जैसे-जैसे दशहरा नजदीक आता है, यह मेहनत एक सांस्कृतिक उत्साह में बदल जाती है।विजया दशमी के दिन बरेका का केंद्रीय खेल मैदान हजारों लोगों की भीड़ से गूंज उठेगा। रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के धधकते पुतले न केवल आकर्षण का केंद्र होंगे, बल्कि बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक बनकर सभी के दिलों में जोश और उमंग भर देंगे।