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नवनीत सहगल का प्रसार भारती अध्यक्ष पद से इस्तीफा : नई जिम्मेदारी या साइडलाइन? सियासी गलियारों में हलचल तेज

1988 बैच के यूपी काडर के IAS अफसर सहगल जुलाई 2023 में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से हुए थे रिटायर, बसपा, सपा और भाजपा की सरकारों में समान रूप से रही पकड़

लखनऊ, 4 दिसंबर 2025:

यूपी की नौकरशाही में लंबे समय तक अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने वाले और केंद्र में भी प्रभावशाली माने जाने वाले रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफसर नवनीत सहगल ने प्रसार भारती के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उनके इस्तीफे को स्वीकार करते हुए आदेश जारी कर दिया है। बताया जा रहा है कि सहगल ने 2 दिसंबर को ही अपना इस्तीफा सौंप दिया था। उनका इस्तीफा स्वीकार होने की आधिकारिक पुष्टि होने के साथ लखनऊ से दिल्ली तक राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं और अटकलें तेज हो गईं।

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Navneet Sehgal Resigns as Prasar Bharati Chief: Political Buzz

सूत्रों का दावा है कि केंद्र सरकार जल्द ही प्रसार भारती के नए चेयरमैन की नियुक्ति कर सकती है। लेकिन सहगल के हटने के पीछे की वजहों को लेकर दो तरह की बातें तैर रही हैं। एक पक्ष का कहना है कि सहगल को जल्द ही कोई बड़ी संवैधानिक या राजनीतिक जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। संभावना जताई जा रही है कि उन्हें किसी राज्य का उपराज्यपाल या राज्यपाल बनाया जाए। अगले साल होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए सहगल जैसी प्रशासनिक पकड़ और राजनीतिक कनेक्ट वाले चेहरे की जरूरत पड़ सकती है। इसके साथ सहगल को यूपी में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की भी चर्चा है।

दूसरी ओर यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि सहगल को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में नाराजगी थी। बताया जाता है कि उनको लेकर कुछ मामले पीएमओ तक पहुंचीं और सोशल मीडिया पर सहगल को लेकर चली नकारात्मक मुहिम ने स्थिति को और दबावपूर्ण बना दिया। ऐसे में माना जा रहा है कि केंद्र ने उनसे इस्तीफा लेकर संकेत दिया है कि उन्हें फिलहाल साइडलाइन कर दिया गया है।

नवनीत सहगल 1988 बैच के यूपी काडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं। तीन दशकों तक उन्होंने यूपी की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति बनाए रखी। गोंडा, अयोध्या, वाराणसी और लखनऊ के डीएम रहे सहगल कई महत्वपूर्ण विभागों की कमान संभालते हुए जुलाई 2023 में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

दिलचस्प बात यह है कि सहगल सिर्फ एक राजनीतिक दल की पसंद नहीं रहे बल्कि बसपा, सपा और भाजपा की सरकारों में उन्होंने समान रूप से अपनी पकड़ बनाए रखी। जहां अधिकांश अफसर एक सरकार से दूसरी सरकार में बदलते ही हाशिये पर चले जाते हैं, वहीं सहगल लगातार तीनों दलों की सरकारों के भरोसेमंद अफसर बने रहे। कुछ दिन पहले लखनऊ में उनके बेटे की शादी में सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव तक कई दिग्गज नेताओं का पहुंचना भी इसकी गवाही देता है।

अब सहगल के इस्तीफे के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या यह किसी नई भूमिका का संकेत है या फिर प्रभावशाली अफसर का अचानक राजनीतिक हाशिये पर जाना? सियासी हलकों में इसका जवाब तलाशने की हलचल अभी थमी नहीं है।

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