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कांग्रेस स्थापना दिवस: जब 1857 की बगावत के डर से बनी थी एक पार्टी, जानिए इसके संघर्ष और सियासत की पूरी कहानी

140 साल पहले अंग्रेजों की एक रणनीति के तहत बनी कांग्रेस आगे चलकर भारत की आजादी की सबसे मजबूत ताकत बनी। सत्ता से विपक्ष तक का यह सफर कांग्रेस को देश की राजनीति की सबसे प्रभावशाली और ऐतिहासिक पार्टियों में शामिल करता है

लखनऊ, 28 दिसंबर 2025:

भारत की राजनीति के इतिहास में कांग्रेस का सफर जितना लंबा है, उतना ही रोचक भी।वही कांग्रेस आगे चलकर देश की आजादी की लड़ाई की सबसे मजबूत आवाज बनी। आज से ठीक 140 साल पहले, 28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी। देश की सबसे पुरानी और प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस का जन्म एक दिलचस्प मोड़ पर हुआ। हैरानी की बात यह है कि जिस पार्टी ने आगे चलकर भारत की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया, उसकी स्थापना किसी भारतीय ने नहीं बल्कि एक अंग्रेज अधिकारी ने की थी। स्कॉटलैंड के रिटायर्ड आईसीएस अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने कांग्रेस की नींव रखी थी।

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Congress Foundation Day and the 1857 Rebellion Impact

1857 की बगावत से डरी ब्रिटिश सरकार

दरअसल, 1857 की क्रांति ने ब्रिटिश शासन को गहरी चिंता में डाल दिया था। अंग्रेज दोबारा किसी बड़े विद्रोह का खतरा नहीं उठाना चाहते थे। इसी डर के चलते उन्होंने एक ऐसा मंच बनाने की योजना बनाई, जहां पढ़े-लिखे भारतीय अपनी समस्याएं, मांगें और असंतोष सीमित और नियंत्रित तरीके से रख सकें। कांग्रेस का शुरुआती उद्देश्य भी यही था, ताकि विरोध की आवाज को एक दायरे में रखा जा सके। इस पूरी योजना को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी ए ओ ह्यूम को सौंपी गई।

पहला अधिवेशन और भारतीय नेतृत्व

कांग्रेस का पहला अधिवेशन पहले पुणे में प्रस्तावित था, लेकिन हैजा फैलने के कारण इसे बंबई स्थानांतरित कर दिया गया। इस ऐतिहासिक अधिवेशन की अध्यक्षता कलकत्ता हाईकोर्ट के बैरिस्टर व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की। खास बात यह रही कि पार्टी की स्थापना भले ही अंग्रेजों की पहल पर हुई, लेकिन नेतृत्व पूरी तरह भारतीयों के हाथ में दिया गया। ह्यूम को उनके जीवनकाल में कांग्रेस का संस्थापक औपचारिक रूप से नहीं माना गया, यह मान्यता उन्हें 1912 में निधन के बाद मिली।

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Congress Foundation Day and the 1857 Rebellion Impact

बंगाल विभाजन से बदली कांग्रेस की दिशा

1905 में बंगाल विभाजन ने कांग्रेस की राजनीति को एक नया मोड़ दिया। पार्टी ने इस फैसले का खुलकर विरोध किया और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया। यहीं से कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सीधी टक्कर लेनी शुरू की। इसी दौर में पार्टी के भीतर विचारधारात्मक मतभेद भी उभरने लगे और नरम दल तथा गरम दल का विभाजन सामने आया। यह कांग्रेस की वैचारिक लड़ाई की शुरुआत मानी जाती है।

गांधी के आगमन से जन आंदोलन बनी कांग्रेस

1915 में महात्मा गांधी के भारत लौटने के बाद कांग्रेस का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। 1919 के असहयोग आंदोलन के साथ गांधी कांग्रेस की धुरी बन गए। सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे बड़े आंदोलनों ने कांग्रेस को ब्रिटिश शासन की सबसे बड़ी चुनौती बना दिया। आजादी से पहले कांग्रेस के करीब डेढ़ करोड़ सदस्य और सात करोड़ समर्थक थे, जो उस दौर में एक अकल्पनीय संख्या मानी जाती थी। https://thehohalla.com/the-dignitaries-had-organized-a-meeting-of-a-particular-caste/

आजादी के बाद सत्ता से विपक्ष तक का सफर

आजादी के बाद कांग्रेस ने देश को छह प्रधानमंत्री दिए, जिनमें जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह जैसे नाम शामिल हैं। पार्टी के अब तक 80 से अधिक अध्यक्ष रह चुके हैं। आजादी के बाद 73 वर्षों में से 38 साल तक कांग्रेस की कमान नेहरू गांधी परिवार के पास रही, जबकि 35 साल गैर गांधी परिवार के नेताओं ने पार्टी का नेतृत्व किया। एक समय अंग्रेजों द्वारा बनाया गया यह मंच आजादी की लड़ाई की कमान संभालने के बाद अब देश की राजनीति में विपक्ष की भूमिका निभा रहा है।

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