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ठोस जमीन तलाशने में लगा रहा संगठन…असमंजस में फंसे राजनैतिक फैसले

RECAP-2025- Uttar pradesh Congress (कांग्रेस)

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में साल 2025 कांग्रेस के लिए कोई बड़ा मोड़ नहीं ला सका। 2024 के लोकसभा चुनाव में सीमित सफलता के बाद उम्मीद थी कि पार्टी प्रदेश में नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेगी, लेकिन पूरा साल संगठन को संभालने, रणनीति बनाने और अपनी भूमिका तलाशने में ही निकल गया। कांग्रेस न तो सत्ता पक्ष को सीधी चुनौती दे पाई और न ही विपक्ष की राजनीति में खुद को केंद्रीय ताकत के रूप में स्थापित कर सकी।

राहुल गांधी के रायबरेली दौरों से नहीं जगा जादू

राहुल गांधी का रायबरेली से रिश्ता 2025 में भी कांग्रेस की सबसे मजबूत कड़ी बना रहा। साल भर में उन्होंने कई बार अपने संसदीय क्षेत्र का दौरा किया। स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें हुईं, सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया गया और युवाओं व महिलाओं से संवाद भी किया गया। इन दौरों से रायबरेली में संगठन को कुछ मजबूती जरूर मिली, लेकिन इसका असर आसपास के जिलों या पूरे प्रदेश में फैलता नजर नहीं आया। राहुल गांधी के कार्यक्रम अधिकतर स्थानीय मुद्दों तक सीमित रहे। विपक्षी दलों की ओर से विरोध और राजनीतिक बयानबाजी भी देखने को मिली। कुल मिलाकर रायबरेली कांग्रेस का सुरक्षित क्षेत्र बना रहा, लेकिन इन यात्राओं से प्रदेश स्तर पर कोई बड़ा राजनीतिक संदेश खड़ा नहीं हो सका।

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बैठक व प्रशिक्षण से भी नहीं मिली संगठन को धार

साल 2025 में अजय राय की अगुवाई में प्रदेश कांग्रेस संगठन को सक्रिय करने की कोशिशें हुईं। जिलों में बैठकें हुईं, प्रशिक्षण कार्यक्रम रखे गए और संगठन में कुछ बदलाव भी किए गए। नए कार्यकर्ताओं को जोड़ने और पुराने ढांचे को फिर से खड़ा करने की बात कही गई। इसके तहत अजय राय पूरे प्रदेश का दौरा करते रहे। कानून व्यवस्था शराब की कम्पोजिट शॉप और सरकारी स्कूलों को मर्ज करने के मुद्दे पर सरकार को भी घेरते रहे। इसके बावजूद संगठन में वह धार नहीं दिखी जो किसी बड़े राजनीतिक आंदोलन के लिए जरूरी होती है। कई जिलों में इकाइयां निष्क्रिय रहीं और बूथ स्तर पर काम कमजोर नजर आया। वरिष्ठ नेताओं और युवा कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल की कमी भी साफ दिखी।

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अजय राय ने मुखर होकर मुद्दों पर आवाज उठाई लेकिन जन आंदोलन से दूर रहे

कांग्रेस ने 2025 में महंगाई, बेरोजगारी और कानून व्यवस्था वोट चोर गद्दी छोड़ जैसे मुद्दों पर आवाज उठाई। कुछ जिलों में प्रदर्शन हुए और ज्ञापन सौंपे गए। प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान प्रदेश नेतृत्व की हिरासत को लेकर भी पार्टी ने विरोध दर्ज कराया। इसके अलावा संविधान संवाद जैसे अभियानों के जरिए जनता से जुड़ने की कोशिश की गई, लेकिन ये प्रयास बड़े जन आंदोलन का रूप नहीं ले सके। मीडिया और राजनीतिक चर्चा में कांग्रेस अक्सर भाजपा और सपा के बीच दबती नजर आई।

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आगे की चुनावी रणनीति पर तस्वीर साफ नहीं

2025 में कांग्रेस का पूरा जोर 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर रहा। पार्टी नेतृत्व ने कई मौकों पर कहा कि संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत किया जाएगा और पार्टी अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के साथ मैदान में उतरेगी। पंचायत चुनाव अकेले लड़ने के फैसले को भी इसी दिशा में उठाया गया कदम बताया गया। हालांकि जमीनी स्तर पर रणनीति को लेकर तस्वीर साफ नहीं दिखी। समाजवादी पार्टी के साथ भविष्य के रिश्तों पर असमंजस बना रहा और इंडिया गठबंधन को लेकर भी कोई ठोस दिशा सामने नहीं आई। बयान जरूर दिए गए, लेकिन चुनावी तैयारी का ठोस खाका अब भी अधूरा नजर आया।

तैयारी आत्ममंथन में गुजर गया साल

कांग्रेस ने दो दिन पहले पार्टी का 140वां स्थापना दिवस मनाया। साल 2025 यूपी कांग्रेस के लिए न तो पूरी तरह निराशाजनक रहा और न ही उम्मीद जगाने वाला। पार्टी ने यह जरूर स्वीकार किया कि बिना मजबूत संगठन के आगे बढ़ना संभव नहीं है और उसी दिशा में प्रयास किए गए। लेकिन इन प्रयासों का असर अभी सीमित दायरे में ही नजर आया। अगर आने वाले समय में कांग्रेस संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने, स्पष्ट चुनावी रणनीति तय करने और स्थानीय नेतृत्व को आगे लाने में सफल होती है, तभी 2027 में वह कोई प्रभावी भूमिका निभा पाएगी। 2025 को फिलहाल कांग्रेस के लिए तैयारी और आत्ममंथन का साल ही कहा जा सकता है।

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