
नई दिल्ली, 23 जून 2025
ईरान और इजराइल के बीच छिड़े युद्ध में अमेरिका की अचानक एंट्री ने वैश्विक राजनीति को झकझोर दिया है। अमेरिका द्वारा 22 जून की रात ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर किए गए हमले ने तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद इसकी पुष्टि की कि फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर बमबारी की गई। इस कार्रवाई की दुनियाभर में आलोचना हो रही है और भारत की विपक्षी पार्टियों ने भी केंद्र सरकार की चुप्पी को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने अपने लेख में मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत ने फिलिस्तीन और पश्चिम एशिया पर अपनी पारंपरिक नीति से समझौता किया है। उन्होंने भारत से आग्रह किया कि वह खुलकर शांति और बातचीत की पहल करे।
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भारत की विदेश नीति को “भ्रामक” बताया और कहा कि भारत को उस मित्र देश के साथ खड़ा होना चाहिए, जिसने मुश्किल समय में उसका साथ दिया।
वहीं, वामपंथी दलों – माकपा, भाकपा, आरएसपी, फॉरवर्ड ब्लॉक और भाकपा (माले) – ने एक संयुक्त बयान में अमेरिकी कार्रवाई को “संप्रभुता का उल्लंघन” बताते हुए विरोध प्रदर्शन की घोषणा की। उन्होंने चेताया कि इस युद्ध का सीधा असर भारत जैसे देशों पर पड़ेगा, जो पश्चिम एशिया पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस हमले को अंतरराष्ट्रीय कानून और अमेरिकी संविधान का उल्लंघन बताया। जेडीयू के केसी त्यागी ने अमेरिका की इस कार्रवाई को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की।
आरजेडी नेता मनोज झा और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने भी अमेरिका और भारत दोनों की भूमिका पर सवाल उठाए। वहीं, ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात कर स्थिति की जानकारी साझा की। पीएम मोदी ने भारत की ओर से शांति और संवाद को प्राथमिकता देने की बात दोहराई।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी किसी भी मुद्दे के समाधान के लिए “बातचीत और कूटनीति” को जरूरी बताया।