
नई दिल्ली, 28 जुलाई 2025
ठीक 111 साल पहले 28 जुलाई 1914 को इतिहास का ऐसा पन्ना लिखा गया, जिसने दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया। ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के युवराज फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या के बाद जो आग भड़की, उसने पूरे विश्व को युद्ध की विभीषिका में झोंक दिया। यही वह दिन था जब प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई।
युवराज फ्रांज फर्डिनेंड और उनकी पत्नी सोफी की सर्ब राष्ट्रवादी संगठन ‘ब्लैक हैंड’ के सदस्य गावरिलो प्रिंसिप द्वारा बोस्निया की राजधानी साराजेवो में हत्या कर दी गई। इसका उद्देश्य था बोस्निया को ऑस्ट्रिया-हंगरी के कब्जे से मुक्त कर सर्बिया में मिलाना। हत्या के तुरंत बाद ऑस्ट्रिया-हंगरी ने सर्बिया को सख्त अल्टीमेटम भेजा, जिसे सर्बिया ने पूरी तरह नहीं स्वीकारा। इसके बाद 28 जुलाई को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया पर युद्ध की घोषणा कर दी।
यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच नहीं रहा। पहले से बने सैन्य गठबंधनों की वजह से यह युद्ध धीरे-धीरे वैश्विक बन गया। एक ओर ऑस्ट्रिया-हंगरी, जर्मनी, ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया ‘मध्य शक्तियाँ’ में थे, वहीं दूसरी ओर रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जापान और अमेरिका ‘मित्र राष्ट्रों’ के रूप में सर्बिया के समर्थन में खड़े हो गए।
करीब 30 देशों ने चार साल चले इस युद्ध में भाग लिया। टैंकों, जहरीली गैसों, मशीन गनों और हवाई हमलों के कारण यह युद्ध अत्यंत विनाशकारी सिद्ध हुआ। अनुमान है कि इसमें 1.5 करोड़ से अधिक लोग मारे गए और दो करोड़ से अधिक घायल हुए।
1918 में युद्ध समाप्त हुआ और 1919 में वर्साय संधि हुई, जिसमें जर्मनी को युद्ध का मुख्य दोषी ठहराकर भारी दंड दिया गया। इस संधि और युद्ध के सामाजिक-आर्थिक परिणामों ने अंततः द्वितीय विश्व युद्ध की नींव रखी।
प्रथम विश्व युद्ध इतिहास का वो मोड़ था, जिसने विश्व व्यवस्था, सीमाएं और सत्ता संतुलन को पूरी तरह बदल दिया।