वाराणसी, 13 अक्टूबर 2024:
दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और इस दिन को पूरे देशभर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। काशी, जिसे शिव की नगरी कहा जाता है, भी इस पर्व में विशेष रूप से उमंग और उत्साह से भरी रहती है। वाराणसी के विभिन्न स्थानों पर विशेषकर बरेका, यूपी कॉलेज, लाटभैरव, और मलदहिया में 13 अक्टूबर 2024 को रावण दहन के दौरान खास तैयारियों के साथ सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की गई थी। पुलिस और प्रशासन की ओर से सख्त निगरानी रही, ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके और लोग सुरक्षित ढंग से इस भव्य आयोजन का आनंद ले सकें।
रावण दहन से पहले रामलीला का भावपूर्ण मंचन
दशहरे के मौके पर वाराणसी में रावण दहन से पूर्व रामलीला का आयोजन हुआ, जिसमें भगवान श्री राम और रावण के बीच हुए युद्ध का जीवंत मंचन किया गया। इस मंचन में भगवान श्री राम द्वारा रावण का वध कर माता सीता को वापस लाने की कथा को अत्यंत भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया। जैसे ही युद्ध का मंचन समाप्त हुआ, दशहरा ग्राउंड में उपस्थित लोग भावविभोर हो उठे।
सुबह से ही दशहरा ग्राउंड में तैयारियां जोरों पर थीं। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशालकाय पुतलों को खड़ा किया गया था। राम और रावण की सेना के बीच युद्ध का नाटकीय दृश्य अत्यंत रोमांचक था। इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे, जिनमें महिलाओं और युवाओं की संख्या अधिक थी। दशहरा ग्राउंड में उपस्थित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए गए थे। जगह-जगह पुलिस बल तैनात था ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके।
बरेका में विशाल पुतलों का दहन
बरेका के दशहरा मैदान में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलों का निर्माण किया गया था, जो देखने में अत्यंत भव्य लग रहे थे। यहां 75 फुट, 65 फुट, और 55 फुट ऊंचाई के पुतले तैयार किए गए थे। जैसे ही रावण दहन का समय आया, लोग उत्साह से भर उठे और मैदान ‘जय श्रीराम’ के नारों से गूंजने लगा। रावण दहन के दौरान सुरक्षा के मद्देनजर पुख्ता इंतजाम किए गए थे और पुलिस प्रशासन ने भीड़ को सुरक्षित दूरी पर रखा। भीड़ की संख्या को देखते हुए आयोजकों ने सभी को सुरक्षित रहने का बार-बार एलान किया।
बरेका में इस आयोजन के लिए विशेष रूप से कुर्सियों का इंतजाम किया गया था ताकि लोग आराम से बैठकर इस भव्य दृश्य का आनंद ले सकें। पुतलों के दहन के दौरान जैसे ही आग की लपटें ऊपर उठीं, लोगों के चेहरे पर विजयोत्सव की चमक साफ देखी जा सकती थी। इस दौरान आतिशबाजी का आयोजन भी हुआ, जिसने इस पर्व को और भी रंगीन बना दिया।
यूपी कॉलेज और लाटभैरव में रावण दहन
वाराणसी के यूपी कॉलेज और लाटभैरव क्षेत्र में भी रावण दहन का आयोजन किया गया। यहां भीड़ का उत्साह देखते ही बनता था। लोग भगवान श्रीराम की जयकारे लगाते हुए पुतलों के दहन का आनंद ले रहे थे। यहां के आयोजन में रामलीला का मंचन भी विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। लोगों ने श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध को बड़ी ही श्रद्धा और उमंग के साथ देखा और अंत में रावण के दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया।
पुलिस प्रशासन की सख्त निगरानी
रावण दहन के इन आयोजनों में पुलिस प्रशासन ने अत्यधिक सतर्कता बरती। वाराणसी के 77 स्थानों पर रावण दहन के आयोजन हुए, और हर स्थान पर पुलिसबल की तैनाती की गई थी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे ताकि कोई अप्रिय घटना न हो। पुलिसकर्मी लगातार भीड़ को सुरक्षित दूरी पर बनाए रखने का प्रयास कर रहे थे। इसके अलावा आयोजकों ने भी जनता से अनुरोध किया कि वे पुतलों के नजदीक न जाएं और निर्धारित क्षेत्र में ही रहें।
काशी की गूंज ‘जय श्रीराम’ के नारों से
रावण दहन के दौरान काशी का माहौल अत्यंत धार्मिक और उत्सवमय हो गया था। जैसे ही लंकापति रावण का पुतला जला, पूरा वातावरण ‘जय श्रीराम’ और ‘हर-हर महादेव’ के नारों से गूंज उठा। इस दृश्य ने उपस्थित लोगों को भावविभोर कर दिया। लोग भगवान राम के आदर्शों और उनके द्वारा स्थापित सत्य, धर्म और न्याय के मूल्यों को याद कर रहे थे।
दशहरे का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
दशहरे का दिन हिंदू धर्म में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध कर अपनी पत्नी माता सीता को रावण के चंगुल से मुक्त कराया था। यह दिन अच्छाई पर बुराई की जीत का प्रतीक है, और इसीलिए इसे ‘विजयादशमी’ के नाम से भी जाना जाता है। दशहरे का त्योहार भगवान श्रीराम के साहस, धर्म और सत्य के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
काशी के लोग दशहरे के इस पर्व को विशेष रूप से श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दौरान लोग भगवान राम के जीवन से प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन में सत्य और धर्म की राह पर चलने का संकल्प लेते हैं।
संस्कृति और परंपराओं का सम्मान
वाराणसी में दशहरे के इस आयोजन ने लोगों को एक बार फिर से अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का अवसर दिया। दशहरे का पर्व सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ खड़े होने का प्रतीक भी है। इस आयोजन के माध्यम से लोगों को यह संदेश दिया गया कि सत्य, धर्म और न्याय की हमेशा विजय होती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
वाराणसी में इस वर्ष दशहरे का त्योहार पूरी भव्यता और श्रद्धा के साथ मनाया गया। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों के दहन ने एक बार फिर से यह संदेश दिया कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः अच्छाई की ही जीत होती है। भगवान श्रीराम के आदर्शों का पालन करते हुए लोग अपने जीवन में सत्य और धर्म की राह पर चलने का संकल्प लेते हुए इस पर्व का समापन करते हैं।