
केरल | 4 जून 2025:
केरल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट किया है कि भारत का संविधान हर व्यक्ति को यह मौलिक अधिकार देता है कि वह अपनी इच्छा से धर्म बदल सकता है और इसे आधिकारिक दस्तावेज़ों में दर्ज कराने की अनुमति भी रखता है। यह फैसला उस युवक के पक्ष में आया है, जिसकी मां हिंदू और पिता मुस्लिम हैं, और जिसने इस्लाम को न मानते हुए हिंदू धर्म अपनाया।
इस युवक ने बताया कि उसका पालन-पोषण उसकी मां ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया, लेकिन स्कूल रिकॉर्ड में उसका नाम ‘मोहम्मद रियाजुद्दीन सीएस’ और धर्म ‘इस्लाम मप्पिला’ दर्ज था। जब वह वयस्क हुआ, तब उसने महसूस किया कि वह इस्लाम में विश्वास नहीं करता और उसने आर्य समाज के माध्यम से विधिवत रूप से हिंदू धर्म को अपनाया। उसने एक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से अपना नाम ‘सुधीन कृष्ण सीएस’ घोषित किया और धर्म ‘हिंदू’ बताया।
लेकिन जब उसने अपने SSLC सर्टिफिकेट में इस बदलाव को दर्ज कराने की कोशिश की, तो अधिकारियों ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि केरल एजुकेशन रूल्स में धर्म परिवर्तन को रिकॉर्ड में दर्ज कराने का कोई प्रावधान नहीं है। युवक ने इसे चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट के जस्टिस डीके सिंह ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 25 के तहत हर नागरिक को न केवल धर्म की स्वतंत्रता है, बल्कि अपने धर्म परिवर्तन को आधिकारिक रूप से दर्ज कराने का भी अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि अगर धर्म परिवर्तन बिना किसी दबाव, धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव के हुआ है, तो यह पूरी तरह से संवैधानिक संरक्षण के तहत आता है।
यह फैसला भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की दिशा में एक मजबूत और संवैधानिक कदम माना जा रहा है।