नई दिल्ली,7 अप्रैल 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया नागपुर यात्रा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और संघ के रिश्तों में आई तल्खी अब कम होती दिख रही है। वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में इस मुलाकात को संघ-बीजेपी के रिश्तों के लिए अहम बताया है। लेख के अनुसार, 11 साल बाद आरएसएस मुख्यालय पहुंचे पीएम मोदी की यात्रा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि संघ का समर्थन बीजेपी के लिए आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
इस मुलाकात में दोनों पक्षों के बीच पुराने मतभेदों को दूर करने और भविष्य में साथ मिलकर काम करने पर सहमति बनी। यह घटनाक्रम बीजेपी नेता प्रमोद महाजन के 2004 में दिए उस बयान की याद दिलाता है जिसमें उन्होंने कहा था, “जो संघ तय करेगा, वही पार्टी में महत्वपूर्ण होगा।” अटल सरकार की हार के बाद संघ ने लालकृष्ण आडवाणी को जिन्ना की तारीफ के कारण हटवाया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का रास्ता साफ किया। मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी का संबंध भी दशकों पुराना है और दोनों इस वर्ष सितंबर में 75 वर्ष के हो जाएंगे।
2013 में भागवत की भूमिका मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने में अहम रही थी। मोदी की पहली जीत के बाद आरएसएस और सरकार के बीच नियमित बातचीत होती रही, हालांकि हाल के वर्षों में दोनों के बीच कुछ तनाव भी सामने आया। 2024 लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 240 सीटें मिलीं और संघ की निष्क्रियता को इसका एक कारण माना गया।
मोदी की नागपुर यात्रा को अब सुलह का प्रतीक माना जा रहा है। पीएम मोदी ने स्वयं को “संघ का स्वयंसेवक” बताया और संघ को ‘अक्षयवट वृक्ष’ कहकर उसकी सराहना की। दोनों नेता हेडगेवार स्मृति मंदिर में एक साथ नजर आए। 2024 के चुनावों में संघ ने पूरे जोश से काम नहीं किया था, खासकर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान के बाद जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी को अब संघ के मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं। इसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में संघ ने सहयोग दिया, जिससे बीजेपी को सफलता मिली। संघ की एक और चिंता बीजेपी के अगले अध्यक्ष का चयन है, क्योंकि नड्डा का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और नए नाम पर फैसला नहीं हुआ है।
सूत्रों के मुताबिक यह फैसला मोदी और संघ मिलकर लेंगे। इसके साथ ही संघ दक्षिणपंथी ताकतों की बढ़ती सक्रियता और उनकी ओर से पेश की जा रही चुनौतियों को लेकर भी सतर्क है। हाल के महीनों में संघ, विशेष रूप से भागवत, ने कुछ नरम रुख अपनाया है, जैसे कि कार्यकर्ताओं से हर मस्जिद के नीचे मंदिर न खोजने की अपील करना। यह स्पष्ट है कि मोदी और भागवत दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है और उन्होंने यह समझ लिया है कि जीत के लिए लचीलापन जरूरी है। अगर संघ को अपनी सभ्यता परियोजना को आगे बढ़ाना है और बीजेपी को स्थिरता पानी है, तो दोनों का सहयोग अनिवार्य हो गया है।