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Reading: चाइनीज मांझा: बनारसी परंपरा पर मंडराता एक खतरनाक साया
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Uttar Pradesh

चाइनीज मांझा: बनारसी परंपरा पर मंडराता एक खतरनाक साया

thehohalla
Last updated: December 30, 2024 12:28 pm
thehohalla 9 months ago
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अंशुल मौर्य

वाराणसी, 30 दिसम्बर 2024:

वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, अपने सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां की गलियों में पतंगबाजी केवल एक खेल नहीं, बल्कि एक परंपरा है। खासकर मकर संक्रांति और तिलकुट चौथ के मौके पर आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों का दृश्य काशी की पहचान है। लेकिन इस सुंदर परंपरा पर चाइनीज मांझे का साया एक गंभीर खतरा बनकर मंडरा रहा है।
चाइनीज मांझा, जो नायलॉन के धागे के साथ कांच और धातु के चूरे से तैयार किया जाता है, न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि इंसानों और पशुओं की जान लेने में भी सक्षम है। वाराणसी में चाइनीज मांझे के कारण कई हादसे हुए हैं, जिनमें मासूम बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक ने अपनी जान गंवाई है। यह न केवल पतंग उड़ाने वालों के लिए, बल्कि सड़क पर चलते राहगीरों के लिए भी जानलेवा साबित हो रहा है।

घटनाएं जो विचलित करती हैं

बीते वर्षों में चाइनीज मांझे के कारण वाराणसी में हुई घटनाएं किसी की भी आत्मा को झकझोरने के लिए काफी हैं। अगस्त 2020 में सात साल की बच्ची कृतिका का गला चाइनीज मांझे से कट गया, और उसकी जान चली गई। इसी तरह 2021 में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव आकाश शुक्ला की मौत ने इस खतरनाक मांझे की विभीषिका को उजागर किया। ऐसे अनगिनत मामले इस बात की ओर इशारा करते हैं कि यह समस्या केवल एक कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता का भी विषय है।

प्रशासन की कोशिशें और चुनौतियां

अपर पुलिस आयुक्त एस. चिनप्पा ने वाराणसी में चाइनीज मांझे की बिक्री और उपयोग पर रोक लगाई है। उन्होंने साफ कर दिया है कि जो भी इस प्रतिबंध का उल्लंघन करेगा, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन क्या यह पर्याप्त है?
बाजारों में चाइनीज मांझे की मौजूदगी प्रशासन की सख्ती पर सवाल खड़े करती है। दालमंडी, लोहता, और अन्य इलाकों में करोड़ों का अवैध कारोबार जारी है। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यह मांझा गोदामों में स्टॉक करके बेचा जाता है, जिससे इसे पकड़ना मुश्किल हो जाता है।

रोपवे परियोजना पर मंडराता खतरा

कैंट रेलवे स्टेशन से गोदौलिया तक बन रहे रोपवे को भी चाइनीज मांझे से बड़ा खतरा है। निर्माण एजेंसी ने साफ कहा है कि अगर यह मांझा रोपवे के केबल से टकराता है, तो संचालन बाधित हो सकता है। यह समस्या न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि राज्य सरकार के लिए भी चिंतन का विषय होनी चाहिए।

परंपरा और प्रगति के बीच संघर्ष

भारत में पतंगबाजी की परंपरा सैकड़ों वर्षों पुरानी है। पारंपरिक मांझा, जो सूत के धागे से तैयार किया जाता है, पर्यावरण के अनुकूल और सुरक्षित है। लेकिन आधुनिकता और सस्ते विकल्पों के चलते चाइनीज मांझे का प्रचलन बढ़ा है। यह मांझा मजबूत तो है, लेकिन इसकी मजबूती ही इसकी सबसे बड़ी खामी है। पेच लड़ाने के दौरान यह मांझा टूटता नहीं है, बल्कि अपने सामने आने वाली हर चीज को काट देता है।

समस्या का समाधान कहां है?

चाइनीज मांझे के खिलाफ सख्त कार्रवाई समय की मांग है। प्रशासन को बाजारों पर निगरानी बढ़ानी होगी और इसके स्टॉक करने वालों के खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे। साथ ही, पतंगबाजी के शौकीनों को जागरूक करना भी बेहद जरूरी है। उन्हें यह समझना होगा कि एक सस्ती और मजबूत मांझा कितनी जानें ले सकता है।
इसके अलावा, स्कूल और कॉलेज स्तर पर जागरूकता अभियान चलाकर बच्चों और युवाओं को सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल मांझे के उपयोग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा की जा सकती है।

आखिरी शब्द

चाइनीज मांझा केवल एक धागा नहीं, बल्कि एक खतरनाक हथियार है, जो वाराणसी जैसे शहर की सुंदर परंपराओं को धूमिल कर रहा है। यह समय है कि प्रशासन, पुलिस, और जनता मिलकर इस खतरे को समाप्त करें। पतंगबाजी की खुशी को सुरक्षित और सकारात्मक अनुभव में बदलने के लिए हमें एकजुट होना होगा।
काशी, जो अपने सांस्कृतिक गौरव के लिए जानी जाती है, को इस समस्या का हल निकालकर एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। पतंगबाजी का यह अद्भुत शौक तब तक सुरक्षित नहीं हो सकता, जब तक हम चाइनीज मांझे पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाते और इसका पालन सुनिश्चित नहीं करते।

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