
बीजिंग/नई दिल्ली, 16 जुलाई 2025
चीन के महान नेता देंग शियाओपिंग ने 1970-80 के दशक में वह कर दिखाया, जिसने देश की तकदीर बदल दी। गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक अलगाव झेल रहे चीन को देंग ने आर्थिक सुधारों के ज़रिए वैश्विक मंच पर स्थापित किया। उन्हें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का चीनी समकक्ष कहा जाता है।
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी कहा था कि “नरसिम्हा राव भारत के देंग शियाओपिंग हैं।” 1991 के आर्थिक संकट में राव ने भारत के लिए वही भूमिका निभाई, जो देंग ने चीन के लिए।
देंग शियाओपिंग 1978 से 1989 तक चीन के सर्वोच्च नेता रहे। माओ युग के बाद उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट व्यवस्था को बनाए रखते हुए बाज़ार आधारित आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। उनका उद्देश्य था—गरीबी खत्म करना और चीन को दुनिया की मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना।
उन्होंने चीन का बाज़ार विदेशी निवेश के लिए खोला, जिससे जर्मन कारें, अमेरिकी हवाई जहाज़ और फ्रांसीसी ब्रांड चीन पहुंचे। लेकिन इसके साथ ही चीन की शर्तों पर तकनीक शेयर कराना भी अनिवार्य था।
देंग के कार्यकाल में चीन ने तेज़ी से औद्योगीकरण किया और करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला। उनकी दो सबसे बड़ी उपलब्धियां थीं—अभूतपूर्व आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन।
उनकी राजनीतिक यात्रा भी उतार-चढ़ाव से भरी रही। सांस्कृतिक क्रांति के दौरान उन्हें निष्कासित किया गया, लेकिन 1978 में वे पूर्ण सत्ता के साथ लौटे। गैंग ऑफ फोर की हार के बाद वे चीनी सुधारों के असली सूत्रधार बने।
1989 में उन्होंने स्वेच्छा से सत्ता छोड़ दी, यह कहकर कि कोई भी नेता दस साल से ज़्यादा पद पर नहीं रहना चाहिए। इससे चीन में नेतृत्व परिवर्तन की परंपरा बनी। देंग ने ऐसा मॉडल गढ़ा जिसने आज चीन को अमेरिका के बराबर वैश्विक ताकत बना दिया है।