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दिवाली के दिन बुझ गया हास्य अभिनय का जगमग दीप…’शोले के जेलर’ असरानी ने दुनिया को कहा अलविदा

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर 2025:

हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता असरानी (Asrani) अब हमारे बीच नहीं रहे। 84 वर्ष की उम्र में सोमवार यानी दीपावली के दिन उनका मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे थे। 20 अक्टूबर की शाम करीब 4 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। असरानी के निधन से बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई है।

पत्नी से कहा था मौत की खबर शेयर न करना आखिरी पोस्ट में कहा हैप्पी दिवाली

वह मुंबई के आरोग्या निधि अस्पताल में भर्ती थे और सांताक्रूज के श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार हुआ जिसमें उनके परिवार वाले शामिल थे। निधन से पहले असरानी ने अपना आखिरी पोस्ट किया था। उन्होंने इंस्टाग्राम पर लोगों को दिवाली की बधाई दी थी। असरानी ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर लिखा था हैप्पी दिवाली। असरानी अपनी मौत के बाद बहुत ताम-झाम नहीं चाहते थे। ऐसे में उन्होंने अपनी पत्नी से कहा था कि डेथ के बाद वह इसकी न्यूज भी शेयर न करे। यही वजह है कि परिवार ने उनका अंतिम संस्कार भी चुपचाप कर दिया

जयपुर से आए मुंबई, 300 फिल्मों में किया अभिनय

असरानी सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि हास्य अभिनय की एक जीवंत संस्था थे। उन्होंने अपने पांच दशक लंबे करियर में 300 से अधिक हिंदी और गुजराती फिल्मों में काम किया और हर किरदार को अपनी अनोखी शैली से यादगार बना दिया। असरानी का जन्म 1941 में जयपुर (राजस्थान) में हुआ था। उनका पूरा नाम गोवर्धन असरानी (Goverdhan Asrani) था। उनके पिता एक कार्पेट कंपनी में मैनेजर थे। जयपुर में पढ़ाई के दौरान ही असरानी का रुझान अभिनय की ओर बढ़ा।

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Actor Asrani 

ऋषिकेश व गुलजार की ‘गुड्डी’ से चमका कॅरियर

उन्होंने शुरुआत में कुछ समय आकाशवाणी में काम किया और फिर अभिनय की बारीकियां सीखने के लिए फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में दाखिला लिया। यहीं पर उनकी मुलाकात ऋषिकेश मुखर्जी और गुलजार जैसे दिग्गज फिल्मकारों से हुई। इनकी ही सिफारिश पर असरानी को ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘गुड्डी’ (1971) में अहम रोल मिला। हालांकि असरानी ने अपने करियर की शुरुआत 1967 की फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ से की थी, लेकिन उन्हें असली पहचान ‘गुड्डी’ से मिली।

‘शोले’ के जेलर किरदार ने बना दिया अमर

1970 के दशक में असरानी का करियर रफ्तार पकड़ चुका था। उन्होंने शोर, रास्ते का पत्थर, बावर्ची, सीता और गीता जैसी फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाई। लेकिन साल 1975 में आई फिल्म ‘शोले’ ने असरानी को सिनेमा इतिहास में अमर कर दिया। फिल्म में उनका किरदार “हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं…” भारतीय सिनेमा के सबसे प्रसिद्ध डायलॉग्स में से एक बन गया। उनकी कॉमिक टाइमिंग, एक्सप्रेशन और आवाज़ के उतार-चढ़ाव ने दर्शकों को खूब हंसाया और असरानी को अमर कर दिया।

अभिनेता के साथ सफल निर्देशक भी

असरानी ने न सिर्फ अभिनय में बल्कि निर्देशन में भी हाथ आजमाया। साल 1977 में उन्होंने अपनी सेमी-बायोग्राफिकल फिल्म ‘चला मुरारी हीरो बनने’ बनाई। इसके बाद उन्होंने सलाम मेमसाब, हम नहीं सुधरेंगे, दिल ही तो है और उड़ान जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। उन्होंने पिया का घर, मेरे अपने, परिचय, नमक हराम, अचानक और अनहोनी जैसी कई क्लासिक फिल्मों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। हालांकि दर्शकों ने उन्हें सबसे अधिक उनके कॉमेडी किरदारों में पसंद किया।

निगेटिव रोल भी निभाए, नई पीढ़ी को भी गुदगुदाया

कई लोगों को लगता है कि असरानी सिर्फ हास्य भूमिकाओं में फिट थे, लेकिन उन्होंने 1972 में ‘कोशिश’ और ‘चैताली’ जैसी फिल्मों में निगेटिव रोल्स भी किए थे। इसके बावजूद दर्शकों ने उन्हें हंसाने वाले किरदारों में ही सबसे अधिक सराहा। उनकी कॉमिक टाइमिंग इतनी बेहतरीन थी कि हेरा फेरी, भूल भुलैया, ढोल, धमाल जैसी नई पीढ़ी की फिल्मों में भी उनकी उपस्थिति ने दर्शकों को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया। करीब 50 वर्षों तक भारतीय सिनेमा को अपनी प्रतिभा से रोशन करने वाले असरानी का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने जिस तरह गंभीरता और विनम्रता के साथ हास्य को जीवन से जोड़ा, वह उन्हें हमेशा यादगार बनाए रखेगा। अब सिनेमा में जब भी कोई ठहाका गूंजेगा, तो याद आएगा वो किरदार “हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं…”

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